क्षणिकाएं
*रंग-रूप*
युवती का
ऐसा खिला रंग-रूप।
जैसे सूरज ने
केशर-दूध में
घोल दिया हो
मुट्ठी भर धूप।
*भूख*
एक था
एक थी
दोनों भूखे थे।
था को मिला तन
थी को मिला धन
दोनों हुए खुश।
*रहमत*
कोरोना काल में
वह बोला सब से
घर से बाहर
कभी रह मत।
क्योंकि
घर में है रहमत।
*मंदी*
कोरोना काल में
कल-कारखानों में बंदी है
झुग्गी-झोपड़ी में
भूख, बेबसी, मंदी है
आसमान में है लिखा
राजनीति बहुत गंदी है।
— प्रमोद दीक्षित मलय