सावन क्यों होता मनभावन?
सूरज अपनी रश्मिपुंज से, जल का वाष्पन करता है।
धीरे – धीरे नभ में लाकर, हवा संग में धरता है।
अपनेपन की सरस ऊष्म से, ये जल-वाष्प मेघ बनते।
धरा सुंदरी को व्याकुल लख, मिलन हेतु आकुल रहते।।
उमड़ घुमड़कर गरज सहमकर, सूरज के सम्मुख जाते।
कभी नम्र हो कभी उग्र हो, दिल की चाहत बतलाते।।
निश्छल प्रेम देख,सूरज से, उनको आज्ञा मिल जाती।
आँख मूँद लेते रवि – चंदा, धरा विरहिणी इठलाती।।
धरा तप्त-निर्वस्त्र बदन को, झुक बादल ढक लेता है।
भूमि-प्रिया के रिक्त हृदय में, नेह- नीर भर देता है।।
छुपा मेघ,वसुधा सकुचाती, आया मनहर है सावन।
इसीलिए लगता है सबको, सावन अतिशय मनभावन।।
डॉ अवधेश कुमार अवध