कविता

/ चलने दो मुझे /

जलता हूँ मैं अपने आपमें
अक्षर बन जाता हूँ नित्य
प्रज्ज्वलित ज्वाला मेरे
बनते हैं अक्षर प्रखर
असमानता, अत्याचारों के विरूद्ध
आवाज़ बनकर आते हैं
ये मेरे प्रखंड प्राणाक्षर
पंचशील का हूँ मैं साधना में
अल्प की दृष्टि से देखो मत
सारा जग मेरा है
प्रपंच मत करो मेरे साथ
देखो तुम भी मेरे अंदर हो
हर इंसान का प्रेम मेरा है
विकार मन!अब मेरे साथ
चाल नहीं चला सकेगा
दुश्मनो! षडयंत्रकारी रचना छोड़ो
भाईचारा कितना सुंदर है देखो
अक्षरों की मशाल हूँ मैं
पथ दिखानेवाली हैं मेरी
पुरखों की ये धमनियाँ
सबका सुकून मैं चाहता हूँ
इस दुनिया में
दिया बनकर चलता हूँ
वैश्विक चेतना के साथ
चलने दो मुझे
अवरूद्ध मत बनो, मूढ़ाचारी
आगे बढ़ने दो मुझे ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।