हास्य व्यंग्य

आप को कोरोना तो नहीं है

मेरे मित्र भाई भरोसे लाल को दिन में गर्मी के कारण दो तीन बार खांसी आ गई तो बस अब क्या था क्योंकि कोरोना काल तो चल ही रहा है। उन के सारे परिजन यानि घर वालों को बहुत चिंता हो गई कि अब उन का क्या होगा ?उन्होंने ध्यान से देखा तो उन्हें हल्का बुखार भी प्रतीत हुआ। बस फिर क्या था। घर वालों ने तुरंत आपात कालीन घर का संसद सत्र आयोजित कर लिया। और चर्चा का परिणाम भी तुरंत आ गया क्योंकि यहां न तो अविश्वास प्रस्ताव था और न ही नोट बंदी जैसा विषय था इस चर्चा के उपरान्त तुंरत ही टेस्ट करने का विचार होने लगा कि कहीं इन्हे कोरोना न हो गया हो। और श्री मती जी यानि उन की पत्नी जी अलग से शुरू हो गईं।
‘इन्हे मैंने हजार बार मना किया है कि बाहर मत जाया करो। सब्जी वाला भी यही आ जाता है और घर का सामान दुकान वाला घर पर ही सामान भेज देता है। पर मेरी कहाँ सुनते हैं। मेरी तो इन्होने कभी जिंदगी में सुनी ही नहीं और अब बुढ़ापे में तो तोये और भी नहीं सुनते हैं। मुझे तो हमेशा से घर में फालतू समझ रखा है। मेरी बात का तो हमेशा इन्होने उल्टा ही किया है। मैं हमेशा घर बनाने की बात करती हूँ और ये घर बिगाड़ने में ही लगे रहते हैं। परन्तु इन्हे घर से क्या इन के लिए तो बाहर वाले ही सब कुछ हैं वे ही इन के सगे संबंधी हैं। घर वाले बेशक मर रहे हों पर इन्हे उन से कोई मतलब नहीं रहता और बाहर वालों के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।पता नहीं बाहर वाले इन्हे क्या देते हैं घर वाले तो जैसे इन्हे काट खाते हैं। इन्हेबार बार बार मना करती हूँ पर फिर भी बाहर पता नहीं क्या करने जाते हैं। बस अब ले लिया बाहर जाने का प्रसाद ,अब पड़े रहना खाट में। पता तो अब चलेगा जब सब इन से दूर हो जायेंगे। अब देखूँगी वे बाहर वाले कौन काम में आएंगे और अब पता चलेगा की कौन २ देखने आएगा। अब कोई नहीं आ कर झांकेगा और इलाज पर अलग से पैसा खर्च होगा प्राइवेट अस्पताल वाले अब जब खाल उतरेंगे तब देखना। पता नहीं कहाँ से इस बीमारी को ले कर आये हैं। सारे दिन घर से बाहर रहते हैं घर पर तो इन का मन ही नहीं लगता है। मैं तो जैसे इन को भाले मरती हूँ। घर से तो ऐसे भागेंगे जैसे भूखी भैंस भुसेड़ा (वह स्थान जहां लोग पशुओं का चारा रखते हैं उसे देशज भाषा में भुसेड़ा कहते हैं यानि जिस में घुस रखा जाता है। ) की तरह भागती है।
इतने में ही बेटा भी बोल पडा कि पापा जी आप भी हो खूब ,जब मम्मी आप को बार २ मना करती हैं तो आप उन का कहना मानते क्यों नहीं हो आप से सब मना करते हैं कि इस उम्र में बाहर मत निकलो तब भी आप बाहर पता नहीं क्यों चले जाते हैं। अब तो सरकार भी अपने विज्ञापनों में बार बार कह रही है। और अब तो सरकार भी आप की ही पार्टी की है। तो हमारी न सही सरकार की तो सुन लो। सरकार बार २ कह रही है कि ६० से ज्यादा उम्र वालो को बाहर नहीं निकलना है। वे पागल थोड़ी हैं और उन्हें आपसे कोई दुश्मनी थोड़ी है ,वह तो आप और हमारे भले के लिए कह रही है। पर आप मानते कहाँ हैं। अब हम सब को भुगतना पड़ेगा।
सरकारी अस्पताल में तो सुनता ही नहीं है। वहाँ तो लाइन में लगे २ ही मरीज आधा और मर जाता है। और प्राइवेट अस्पताल वाले तो मरीज का इलाज कहाँ करते हैं पर उसे कपड़े की तरह निचोड़ जरूर लेते हैं। वे तो बिना उस्तरे के ही ज़िंदा मजिज की और उस के घर वालों की खाल भी उतारे बिना नहीं मानते हैं ,बिना बात के सौ तरह के टेस्ट करवा लेते हैं चाहे उन की जरूरत है या नहीं है पर इस बात से उन्हें क्या लेना देना की मरीज के पास कुछ है भी या नहीं है और मरीज को उन टेस्ट से संबंधित बीमारी भी है या नहीं है उन्हें तो बस पैसे मतलब है वे इस कमाई को किसी भी तरह हाथ से नहीं जाने देते हैं। वे तो साधारण जुकाम में भी कई तरह के टेस्ट करवा लेते हैं कि कहीं एड्स न हो गया हो। पाप जी आप भी हो खूब।
अब जब सभी बहती गंगा में हाथ धो रहे थे तो घर के बाकी सदस्य भी भला क्यों पीछे रहते। बेटी भी बीच में बोल पड़ी पापा तो किसी की भी नहीं सुनते हैं आप मम्मी की बात सुनते क्यों नही हो। मम्मी सारा दिन आप के आगे पीछे लगीं रहती हैं और आप की हर बात मानतीं हियँ आप जो कहें वहीं बनातीं हैं पर फिर भी आप उन की नहीं सुनते हैं सब बातों में अपनी चलते हैं मुझे भी बाहर हॉस्टल में आप ने इस लिए नहीं भेजा कि वहां लड़कियां बिगड़ जातीं हैं जिन्हे बिगड़ना है वे तो घर पर रह कर भी बिगड जातीं हैं। देखा नहीं पड़ोस की लड़की को उस के घर वाले ट्यूशन भी छोड़ने जाते थे और लेने जाते थे उसे कहीं अकेले नहीं भेजते थे फिर भी वह भाग गई। क्या सभी लड़किया हॉस्टल में रह कर बिगड़तीं हैं आप ने तो देहली के नामी हॉस्टल के जैसे ही सब हॉस्टल समझ लिए हैं। आप को खूब पता है आजकल लड़कियांबाहर जा कर खूब नाम कमा रहीं हैं आप के दोस्त ने तो अपनी दोनों लड़कियां ही बाहर भेज दीं हैं और आप मुझे बाहर पढ़ने तक के लिए नहीं भेज रहे हैं।
बेटी तो बेटी अब जब सब ही भाई भरोसे लाल के सुनाने में लगे हैं तो बहू भी कैसे यह अवसर अपने हाथ से जाने देती। वह भी बोल पड़ी कि पापा जी तो किसी की नहीं सुनते हैं जब भी इन्हे नाश्ते के लिए कहो तो हमेशा किसी और काम में लग जाते हैं और नाश्ता ठंडा होता रहता है। फिर से कितनी बार गर्म करना पड़ता है। ऐसे ही खाने के समय करते हैं यह नहीं सोचते हैं कि घर में और भी कितने ही घर के काम होते हैं। आखिर मैं भी इंसान हूँ क्या मैं इसी काम मे लगी रहूँ और पता नहीं किस किस को ला कर घर में बिठा लेते हैं। फिर उन की आवभगत में लगे रो। कभी चाय कभी कुछ कभी कुछ इन की तो बीएस जुबान हिल जाती है ये ले आओ वो ले आओ पर जब ये मम्मी की ही नहीं सुनते तो हमारी क्या सुनेंगे।
अब जब सब बेचारे भाई भरोसे लाल के पीछे पद गए तो भला बच्चे भी पीछे क्यों रहते। वे भी शुरू हो गए कि दादा जी अब तो हम बबड़े हो गए हैं आप को जो चाहिए हमे बता दिया करो हम आप को सब लाकर देंगे पर आप बाहर पता नई क्यों जाते हैं आप दादी जी की बात मानते क्यों नहीं हैं। आप को दादी जी की बात तो माननी चाहिए। अब आप बाहर बिलकुल मत जाना। हम हैं न हमे बताना जब भी कुछ मंगवाना हो
परन्तु बेचारे भाई भरोसे लाल उन से कैसे मंगवा सकते थे कि उन के बचपन के दोस्त ला दो जिन से वे अपने मन की बात खुलकर कर सके। जिन के नाम ले कर वे मन की बात कह सकें। अपने दुःख सुख को सांझा कर सकें उन्हें अपने दुःख दर्द बता कर अपना मन हल्का कर सकें। बताओ उन के पोते पोतियां क्या यह सब कर सकते हैं। परन्तु उन्हें तो मेरे पास तक आने का समय नहीं है। उन्हें तो फेस बुक, नेट और पढ़ाई से ही फुरसत कहाँ हैं भला वे मेरे पास बैठे या अपनी पढ़ाई करें। और वे मेरे पास बैठ कर करेंगे भी क्या। उन की अपनी दुनिया है। अपने फ्रेंड हैं नै २ बातें हैं। जब कि मेरे पास तो वही पुराणी बातें हैं जिन्हे ये कई २ बार सुन भी चुके हैं।
इस के साथ ही यदि वे घर पर रहेंगे तो अपनी श्री मती जी से कितनी देर उन की कर्ण कटु लोगों की बाटे सुन सकता हूँ उन का एक ही विषय रहता है मेरे घर वाले जिन की वे हर स्काई बुराई के सिवाय कुछ कर ही नहीं सकती हैं। आखिर उन की ये सब बातें कितनी देर तक सुन सकता हूँ ‘और यदि हमेशा घर में रहूँ तो बहू को भी परेशानी हो जाएगी कि बुढ्ढा चौबीसों घंटे घर में ही घुसा रहता है तो बताओ बाहर न जाऊं तो क्या करूँ। और बिना अपने दोस्तों से मन कीबात किये बिना तो अब चैन ही नहीं मिलता है। अब तो आदत भी पद गई है। एक दुसरे मिलने के लिए हम बैचेन रहते हैं। बेचारे भरोसे लाल को खांसी बुखार क्या हुआ या कोरोना तो उस का कुछ नहीं करेगा पर घर में रहकर बच्चों की नसीहते उसे जरूर कुछ कर देंगी .अब शायद पितृ देवो भव नहीं रहा है। अब तो घर में फालतू पड़ा हुआ बूढ़ा है। जिसे भगवान पता नहीं कब उठाएंगे। परन्तु फिर भी भाई भरोसे लाल भगवान में अपना मन लगाने का पूरा प्रयत्न करते रहते हैं।वे सोचते हैं कम इस बुढ़ापे में ही भगवान का नाम ले लूँ जब तो इन बच्चों को पलने में ही लगा रहा परन्तु इस में उन कसूर है। अब समाज काढांचा ही ऐसा बन गया है क्योंकि मध्यम वर्ग से जिस तरह सब तरफ लूट मचाई जा रही है उस में वह कैसे सुरक्षित महसूस करे.उस के लिए बहुत बड़ा संकट है। विदेशों में तो बुजुर्गों के स्वस्थ्य का ख्याल स्वयं सरकार करती है परन्तु यहां बूढ़ा बीमार हो जाये तो घर तक बिकने की नौबत आ जाती है। आखिर हम ने कितनी तरक्की की है इसी से पता चल रहा है कि इस तरक्की ने लुटने के नए २ साधन हमे दे दिए हैं। यही हमारी तरक्की है।

— डॉ वेद व्यथित

डॉ. वेद व्यथित

ख्यात नाम : डॉ. वेद व्यथित नाम : वेद प्रकाश शर्मा जन्म तिथि : अप्रैल 9,1956 शिक्षा : एम्० ए० (हिंदी ),पी एच ० डी० शोध का विषय "नागार्जुन के साहित्य में राजनीतिक चेतना मेरठ विश्व विद्यालय मेरठ वर्तमान पता : अनुकम्पा -1577 सेक्टर -3 ,फरीदाबाद -121004 फोन नम्बर : 0129-2302834 , 09868842688 ईमेल : [email protected] Blog : http://sahiytasrajakved.blogspot.com सम्प्रति : अध्यक्ष - भारतीय साहित्यकार संघ (पंजी ) संयोजक - सामाजिक न्याय मंच (पंजी) उपाध्यक्ष - हम कलम साहित्यिक संस्था (पंजी ) शोध सहायक - अंतर्राष्ट्रीय पुनर्जन्म एवं मृत्योपरांत जीवन शोध केंद्र इंदौर ,भारत परामर्श दाता - समवेत सुमन ग्रन्थ माला सलाहकार - हिमालय और हिंदुस्तान विशेष प्रतिनिधि - कल्पान्त सम्पादकीय परामर्श - ब्रह्म चेतना सम्पादकीय सलाहकार - लोक पुकार साप्ताहिक पत्र संस्थापक सदस्य - अखिल भारतीय साहित्य परिषद ,हरियाणा प्रान्त पूर्व सम्पादक - चरू (साहित्यिक पत्र ) पूर्व प्रांतीय सन्गठन मंत्री - अखिल भारतीय साहित्य परिषद परामर्श दाता : www.mohantimes .com (इ पत्रिका ) जापानी हिंदी कवि सम्मेलनों में सहभागिता अनुवाद : जापानी,रुसी ,फ्रेंच , नेपाली तथा पंजाबी भाषा में रचनाओं का अनुवाद हो चुका है प्रकाशन : मधुरिमा (काव्य नाटक ) १९८४ आखिर वह क्या करे (उपन्यास )१९९६ बीत गये वे पल (संस्मरण )२००२ आधुनिक हिंदी साहित्य में नागार्जुन (आलोचना )२००७ भारत में जातीय साम्प्रदायिकता (उपन्यास )२००८ अंतर्मन (काव्य संकलन )२००९ न्याय याचना (खंड काव्य ) 2011 साहित्य पर शोध : 'बीत गए वो पल' संस्मरण में सामाजिक चेतना कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय कुरुक्षेत्र 'आखिर वह क्या करे ' उपन्यास में अन्तर्द्वन्द की अवधारणा विनायक मिशन्स विश्व विद्यालय तमिल नाडू 'भारत में जातीय साम्प्रदायिकता ' उपन्यास में सामाजिक बोध krukshetr विश्व विद्यालय 'मधुरिमा' काव्य नाटक पर शोध कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय नवीन सर्जन : * "व्यक्ति चित्र " नामक नवीं विधा का सर्जन किया है * "त्रि पदी" काव्य की नई विधा का सर्जन किया है अन्य *कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय में आयोजित एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में अंतिम सत्र की अध्यक्षता * शताधिक साहित्यिक समारोह व गोष्ठियों की अध्यक्षता की है अंर्तजाल (Internet) पर प्रकाशित विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशन : www.pravasiduniya.com www.sahityashilpi.com www.p4poetry.com http://sakhikabira.blogspot.com http://aakhrkalsh.blogspot.com http://blog4varta.blogspot.com http://utsahi.blogspot.com www.chrchamnch.com www.janokti.com www.srijangatha.com www.khabarindya.com etc. सम्मान : साहित्य सर्जन के लिए "समाज गौरव "सम्मान भारतीय साहित्यकार संसद द्वारा "मोहन राकेश शिखिर सम्मान पत्रकार विश्व बन्धु सम्मान युवा कार्यक्रम एनम खेल मंत्रालय भारत सरकार द्वारा सम्मान हिमालय और हिंदुस्तान एवार्ड हरियाणा सरकार द्वारा आपात काल के विरुद्ध किये संघर्ष के लिए ताम्र पत्र से सम्मानित विभिन्न विधाओं में निरंतर लेखन....