गीतिका/ग़ज़ल

वतन को जान हम जानें

वतन को जान हम जानें, हमारी जाँ वतन में हो।
जुड़ा है जन्म से नाता, जनम भर मन नमन में हो।

कुटिल सैय्याद जब भी बनें, विधाता भव्य भारत के।
बदल दे तख्त ज़ुल्मों का, वो जज़्बा जोश जन में हो।

करम ऐसे न हों अपने, शरम से नैन झुक जाएँ।
हया के अश्क हों बाकी, दया का भाव मन में हो।

अगर फूलों को रौंदेंगे, बनेगा बाग ही बंजर।
सदय जो हाथ सहलाएँ, सदा खुशबू चमन में हो।

बुनें ऐसे सरस नगमें, गुने दिल से जिन्हें दुनिया।
सुनाएँ कुछ गज़ल ऐसी, कि चर्चा अंजुमन में हो।

सजग साहित्य सेवी हों, सबल हो देश की भाषा।
लुभाए विश्व को हिन्दी, वो ताक़त अब सृजन में हो।

न लाँघे शत्रु सरहद को, भले ही शीश कट जाएँ।
मिले माटी में जब तन ये, तिरंगे के कफ़न में हो।

-कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]