गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सावन की बरसातों में प्रेम का अंकुर फूट न जाए
एक बेचैनी सी है मन में धैर्य का धागा टूट न जाए।

ये कैसा अहसास है जिसमें बिना डोर हम बंध बैठे
प्रेम विवष कर मन मेरा कोई मुझसे लूट न जाए।

तू है तारा नील गगन का मैं तिनका कंकर माटी
कैसे तुमको छू पाएंगे आस का सूरज डूब न जाए ।

तुम संग पावन प्रीत की बंधन प्यार से मैंने बांधा है
किसी हाल में किसी मोड़ पे हाथ हाथसे छूट न जाए।

तेरी सूरत में जानिब मैंने मन का मनमोहन देखा है
मेरा मन राधा हो बैठा ये जग हमसे रूठ न जाए।

— पावनी जानिब सीतापुर

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर