ग़ज़ल
हर बुरे काम का अंजाम बुरा है।
बद से ज्यादा यहाँ बदनाम बुरा है।।
किसी चेहरे के पार नीम अँधेरा,
दिल बुरा है तो उसका चाम बुरा है।
आदमी की तरह,आदमी नहीं रहता,
कैसे कह दूँ कि हरिक गाम बुरा है।
जिसको मालूम नहीं वक्त की कीमत,
उसकी खातिर तो ये आराम बुरा है।
जो हैं मशगूल अपनी मस्ती में,
उनकी खातिर तो हरिक काम बुरा है।
बेख़ुदी ग़र न ले आगोश में अपने,
ऐसा मयख़ाना बुरा जाम बुरा है।
ज़ुल्म सहना भी ‘शुभम’ जुल्म के जैसा,
करना ज़ालिम का एहतराम बुरा है।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’