मुक्तक/दोहा

चिकित्सकों को समर्पित मुक्तक

  • चिकित्सकों को समर्पित मुक्तक

जिंदगी के सफर में जो हमारा ध्यान रखते हैं
खिलाकर गोलियाँ कड़वी खड़े ये कान रखते हैं
भगवान की औलाद हम ये जानते सब हैं
उसी भगवान की औलाद का ये मान रखते हैं।1

डूबती हुई कस्तियों के किनारे तुम ही होते हो
खड़ी हो मौत जब सम्मुख सहारे तुम ही होते हो
छीन यमराज के हाथों से ही तुमने ही बचाया है
उस घड़ी में बन ईश्वर हमारे तुम ही होते हो।2

फिक्र दिन की नहीं तुमको न चिंता रात की रखते
सेवा ही समर्पण है न चिंता जात की रखते
किसी की जिंदगी अनमोल है ये जानते तुम हो
खड़ा कोरोना है सम्मुख न चिंता घात की रखते।3

डॉ. शशिवल्लभ शर्मा

डॉ. शशिवल्लभ शर्मा

विभागाध्यक्ष, हिंदी अम्बाह स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, अम्बाह जिला मुरैना (मध्यप्रदेश) 476111 मोबाइल- 9826335430 ईमेल[email protected]