बरसता सावन
मौसम-ए-इश्क है, उसपे ये बरसता सावन।
आभी जाओ के है, मिलने को तरसता सावन।
छुप गया चाँद, घटाओं के शोख चिलमन में,
साज़िशे’ कर के, बादलों से गरजता सावन।
दिल की बेचैनियां, बढ़ा रही बिजली की तड़प,
तेरी आहट की, धड़कनों पे, धड़कता सावन।
राह तकती रहीं, बेचैन निगाहें कब से,
तेरे दीदार की, हसरत में, मचलता सावन।
तुम न आए के, वही आलम-ए-तनहाई है,
हाए ख़ामोश, सदाओं पे, सिमटता सावन।
मैने देखा है घटाओं में अपनी आंखों को,
स्वाति पुरजोर फुहारों में छलकता सावन।
— पुष्पा “स्वाती”