कविता

संग साथ की इच्छा


संग साथ की, इच्छा थी, पर, कोई भी साथ निभा न सकी।
नहीं, चाह थी, रूप रंग की, मन की प्यास, बुझा न सकी।।
सीधे-सच्चे पथ पर चलना।
नहीं चाहिए, कोई छलना।
सब कह ले, सब कुछ सुन ले,
बाहों में उसके, चाहूँ मचलना।
प्रेम राह, मिल चलना चाहा, कोई भी, राह दिखा न सकी।
संग साथ की, इच्छा थी, पर, कोई भी साथ निभा न सकी।।
कामना रहित, प्रेम हो जिसका।
नहीं, किसी से, वैर हो उसका।
बुजुर्गो के प्रति, सेवा भाव हो,
हित जो चाहे, सदैव ही सबका।
अंग-अंग, सौन्दर्य भले ही, कर्मो से, मुझे लुभा न सकी।
संग साथ की, इच्छा थी, पर, कोई भी साथ निभा न सकी।
नारीत्व दिखा, अन्दर ना पाया।
झूठे ही, प्रेम का, गाना गाया।
छलना, छल का भेद, खुला जब,
पता चला, बस था, भरमाया।
कमनीय कामिनी की, झूठी अदायें, पथ से मुझे डिगा न सकीं।
संग साथ की, इच्छा थी, पर, कोई भी साथ निभा न सकी।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)