कौन जाने …..(कविता)
यह बस्तियों की
गोद में बैठे दुबके हुए सन्नाटे
कब उठेंगे
कौन जाने …
दमघोटू हवा के भीतर
कब तक आदमी
यूं ही घुट घुट कर जिएगा
कौन जाने …
इस भीषण त्रासदी को
लिखने के लिए
कितने हाथ शेष बचेंगे
कौन जाने …
गंतव्य की ओर
रुकी हुई आदमी की
पद चाप कब फिर से
हरकत में आएगी
कौन जाने….
— अशोक दर्द