महंगाई (छप्पय)
महंगाई बढ़ती रही, जैसे कोई बाढ़,
अफसर लेते ही रहे, जनसंख्या की आड़.
जनसंख्या की आड़, है बढ़ती महंगाई,
महंगाई है कम, कहते आंकड़े सरकारी,
जब तक मूल्यों के बढ़ने की, गति नहीं रुक पाई,
मानवता सस्ती हो जाएगी, बढ़ जाएगी महंगाई.
19.1.1985
महंगाई बढ़ती रही, जैसे कोई बाढ़,
अफसर लेते ही रहे, जनसंख्या की आड़.
जनसंख्या की आड़, है बढ़ती महंगाई,
महंगाई है कम, कहते आंकड़े सरकारी,
जब तक मूल्यों के बढ़ने की, गति नहीं रुक पाई,
मानवता सस्ती हो जाएगी, बढ़ जाएगी महंगाई.
19.1.1985