शेखर की दूसरी जीवनी
मेरी माँ पूजा-पाठ में ज्यादा ही ध्यान देती थी, उन्हें गृहस्थी से कोई मतलब नहीं, किंतु उनमें वात्सल्य ममत्व कूट-कूट कर भरी थी । मैं अज्ञेय का शेखर जरूर था, किन्तु मेरी माँ शेखरवाली माँ नहीं थी, किन्तु शेखर की शशि की भांति उनकी भी एक शशि थी । एक रात शशि दूसरे से शादी कर उनके घर चली गई ! मैं अवाक था ! बीस बरस हो गए, मैं तो अपनी इच्छा को दबा गया और किसी और कि तरफ नहीं देखा ! ….पर मेरी माँ अब भी शशि के इंतज़ार में है….. अब तो अब उनकी बिटिया भी बालिग हो गयी हैं, इसी साल 19 वर्ष बरस की हो गयी और वे भी प्रेम करने लगी है, प्रेमी का नाम शेखर है !