सिलवटें
सजती है,
संवरती है
बिंदिया माथे पे लगाती है
भरने लगती है
मांग सिंदूर
पर…
कुछ सोच कर वो
रुक जाती है।
चोर नजरों से देख
अपंग पति को
आंखों की नमी छुपाती है
पोंछती है चुपचाप,,,
अपनी नम आंखें,
फिर…
लबों पर लाली
वो सजाती है ।
पोत के चेहरा
अबला फिर
दहलीज… सीमाओं की
पार कर जाती है।
खुद बन सामान
करती है… सम्मान का सौदा
और दिन के “उजलों” के
बिस्तर की सिलवटें
बन जाती है।
“नापाक – अधर्मी”
कर… रूह का सौदा
कीमत अपनी लगती है।
सब देखते हैं उसके
कपड़ों की सिलवटें
और वो… अश्रुओं से
रूह की सिलवटें
मिटाती है।
न जाने ऐसी
कितनी बेबस
पीती हैं …
अपमान का घूंट
और जीते जी मर जाती हैं।
करतीं हैं वो,,,
अपने तन का सौदा
और… कुलटा कहलाती हैं।।
अंजु गुप्ता