गीतिका/ग़ज़ल

अब कहानी सुहानी नहीं लगती है

अब कहानी सुहानी नहीं लगती है
पहले जैसी रवानी नहीं लगती है..।।

लापता से सभी रिश्ते हैं आजकल
अपनेपन वाली महफ़िल नहीं लगती है..।।

अब तो सावन की बारिश भी भाती नहीं
रिमझिम वाली घटा अब नहीं लगती है..।।

जो रहते थे आतुर सदा मिलने को
अब मिलन वाली बातें नहीं लगती है..।।

बात होती थी अक्सर मधुर प्रेम की
प्रेम वाली वजह अब नहीं लगती है..।।

वक़्त ने सब ये बदलाव ऐसे किया
सच्ची बातें भी अब सच नहीं लगती है..।।

— विजय कनौजिया

विजय कनौजिया

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