गीत लिखूं या प्रीति लिखूं तुमको भाए तो मीत लिखूं बस जाओ यदि मेरे मन में फिर तुमको मैं मनमीत लिखूं। तुम सृजन बनो मैं सृजनकार लिखना हो जाए फिर साकार तुम शब्द पटल बन जाओ यदि तुमको कविता का भाव लिखूं। सब छंद सोरठा दोहा अब श्रृंगार तुम्हारे नाम लिखूं तुम बनो साक्षी इस […]
Author: विजय कनौजिया
आज संकल्प हम करते हैं
चलो हमारे प्रेम भवन का शिलान्यास हम करते हैं हो निर्माण शीघ्र ही इसका पहल आज से करते हैं..।। सहभागिता तुम्हारी हो तो प्रेम भवन अपना बन जाए बस जाओ तुम मन मंदिर में प्रेमार्पण हम करते हैं..।। मुख्य द्वार को पद चिन्हों से आज विभूषित तुम कर दो गृहणी बन जाओ इस घर की […]
वक़्त के संग चलना होता है
वक़्त कभी अपना होता है वक़्त कभी सपना होता है साथ नहीं सीखा यदि चलना फिर सब कुछ सहना होता है..।। वक़्त सदा गतिमान रहा है औरों से बलवान रहा है नहीं किया गर कद्र वक़्त का फिर एक दिन झुकना होता है..।। जितनी चाहे दौड़ लगा लो आसमान को चूम भले लो अगर वक़्त […]
कहाँ अब दिन सुहाने हैं
नही है फ़िक्र अब वैसी, नहीं वादे पुराने हैं निभाते थे जिसे पहले, कहाँ रिश्ते पुराने हैं..।। लुभाते थे कभी जो गीत हम भी गुनगुनाते थे नहीं भाते हैं अब मन को कहाँ ऐसे तराने हैं..।। झलक धूमिल सी लगती है झुकी नज़रों में अक्सर अब है बदला प्रेम का मौसम कहाँ अब दिन सुहाने […]
कैसे हम नूतन वर्ष मनाएं?
नूतन वर्ष की आहट भी सहमी-सहमी सी लगती है हर चेहरे मुरझाए से हैं खुशियां भी सहमी लगती हैं..।। बीते वर्ष का ज़ख्म अभी हम सब कब तक भर पाएंगे रोजी-रोटी है छिनी हुई बोलो कैसे मुस्काएँगे..।। उम्मीदों का दामन भी तो हैं सिमट चुके हालातों से अपने अपनों से दूर हुए किसके संग खुशी […]
अब तो पांव लगे हैं जमने
लिखते-लिखते लिख डाले हैं जीवन के कितने ही पन्ने फिर भी जीवन अनसुलझा है न जाने कितने हैं लिखने..।। जीवन में हर कोण बनाकर जीवन गणित लगाया है फिर भी हैं सवाल कुछ बाकी कैसे हल होंगे ये सपने..।। दूर-दूर रह पास-पास रह हर आभास किया जीवन में नहीं समझना आसां है कुछ किसे कहें […]
अब तुम्हारे लिए
लेखनी बनकर बस तुम रहो साथ मैं लिखूं गीत बस अब तुम्हारे लिए..।। जो बचे खाली पन्ने हैं अरमानों के प्रीति उस पर लिखूं मैं तुम्हारे लिए..।। मेरी फीकी हंसी में मिला दो हंसी मुस्कुराउंगा मैं बस तुम्हारे लिए..।। रूठकर मुझसे तुम न सताया करो प्रेम मेरा है बस अब तुम्हारे लिए..।। साथ से साथी […]
आधुनिक परिवेश में सिसकती हिन्दी
आज के आधुनिक परिवेश में मानव जीवन पर आधुनिकता पूरी तरह से हावी होती जा रही है, लोग अंग्रेजी भाषा की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं । उन्हें लगता है कि अंग्रेजी भाषा से उनके व्यक्तित्व पर काफी प्रभावशाली प्रभाव पड़ता है, जिससे कि वह बहुत ही गर्व महसूस करते हैं । मानव जीवन […]
बूढ़ी अम्मा भी फिर आज चलने लगी है
गांव की गलियां फिर से चहकने लगी हैं पुष्प की कलियां फिर से महकने लगी हैं बूढ़ा बरगद भी फिर मुस्कुराने लगा है देखकर बच्चों को गुनगुनाने लगा है डालियां फिर से झूला झुलाने लगी हैं पेड़ की चिड़ियां फिर चहचहाने लगी हैं कोरोना ने बहुत चाहे सबको रुलाया मगर इसने कितनों को फिर से […]
कर दो तुम मेरा उद्धार
तुम मेरी रचना बन जाओ बन जाऊं मैं रचनाकार सृजन सहज हो जाए मेरा लिखना हो जाए साकार..।। शब्द शिल्प में रसता दे दो उसे अलंकृत कर दूं मैं मेरी कविता तुम बन जाओ इतना बस कर दो उपकार..।। छंद सोरठा दोहा लिख दूं बस मेरी उपमा बन जाओ हो जाए फिर काव्य विभूषित तुमसे […]