नीना अकेली घर में उदास बैठी थी। उसका विवाह हुए अभी कुछ ही महिने हुए थे। नीना एक छोटे से शहर की लड़की थी। विवाह के बाद अपने पति के साथ बैंगलोर में रहने लगी। उसका पति सागर रोज सुबह सात बजे अपने ऑफिस के लिए निकल जाता था और रात में दस बजे घर पहुंचता था। इस नये शहर में नीना सुबह से रात तक अकेली उदास बैठी रहती थी। पास-पड़ोस में वह किसी को भी नहीं जानती थी। कभी टीवी तो कभी मोबाइल के साहरे ही अपना समय काटती थी। सागर नीना से बहुत प्रेम करता था, पर अॉफिस तो उसे जाना ही पड़ेगा। सागर को अपने घर से ऑफिस जाने में दो घंटे लग जाते थे। इसी तरह आने में भी उसे दो घंटे लगते थे और अगर कभी ट्रेफिक ज्यादा हुआ तो समय अधिक भी लग जाता था। नीना भी पढ़ी-लिखी लड़की थी। वह भी नौकरी ढूंढ रही थी, पर आजकल नौकरी के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं। नौकरी मिलना इतना आसान नहीं है।
सावन महीना चल रहा था। लगभग रोज ही बरसात हो रही थी। नीना को बचपन से ही बारिश के पानी में भीगना बहुत अच्छा लगता था। बचपन में जब कभी भी बारिश होती थी तो वह छाता लेकर घर के बाहर पानी में निकल जाती थी। साथ में उसकी अतरंग सखि व पड़ोसी मीता भी आ जाती थी। दोनों एक दूसरे के गले में हाथ डाले, पैरों से पानी को उछालते हुए इधर से उधर घूमती थीं। कभी-कभी कागज की नाव बनाकर सामने बहते हुए पानी में चलाती थीं। दोनों का यह सिलसिला कॉलेज आने तक भी यूंही चलता रहा।
दरअसल दोनों सखियां बारिश की कोमल नरम बूंदों से बेहद स्नेह करती थीं। कभी-कभी दोनों अपना मुंह ऊपर करके उन बूंदों को अपने चेहरे पर समा लेना चाहती थीं। शुरू-शुरू में माँ बहुत डांटती थी कि तुम दोनों बीमार हो जाओगी, पर बाद में उन दोनों का यह बरसात स्नेह देखकर माँ ने भी डांटना बंद कर दिया था। लेकिन वह दोनों कभी भी इन कोमल बूंदों से बीमार नहीं हुईं।
आज नीना अपने बैंगलोर के घर की बॉलकनी में बैठी ठंडी-ठंडी फुहारों का आनंद ले रही थी और मीता को याद कर रही थी, काश मीता भी यहां होती तो कितना मजा आता। सागर को नीना का यह बरसाती बूंदों का प्रेम पता था। नीना की माँ ने सागर को सब कुछ बता दिया था। सागर ने सोचा आज वह भी नीना के साथ बारिश का आनंद लेगा, इसलिए अॉफिस से आधे दिन की छुट्टी लेकर, नीना को बिना बताए सागर तीन बजे घर पहुंच गया। जैसे ही सागर ने अपनी चाबी से घर का दरवाजा खोला तो देखा नीना बालकनी में उदास बैठी, हाथों में पानी की बूंदें ले रही थी। सागर ने धीरे से जाकर नीना को पकड़ लिया। नीना एक पल तो डर गई पर दूसरे ही क्षण सागर को देख कर खुशी से झूम उठी।
सागर ने कहा नीना चलो, आज बाहर बारिश का आनंद लेते हैं। नीना को तो मनचाहा मिल गया। मानो उसके पंख लग गए हो। वह खुशी से उड़ने लगी। दोनों ने एक छाता लिया और गले में बाँहें डाले बाहर पानी निकल आए। नीना तो खुशी से पागल हुई जा रही थी। वह बोली- सागर तुम कितने अच्छे हो। घंटों दोनों पानी में घूमते रहे। सामने के होटल में बैठकर दोनों ने चाय पी। फिर गांधी-पार्क में जाकर, छतरी फेंककर खुले आसमान के नीचे सीमेंट की बैंच पर घंटों तक बातें की। दोनों ने एक-एक बूंद को अपने में समाया।
अब हल्का-हल्का अंधेरा घिरने लगा था। दोनों खुशी से इटलाते हुए वापस अपने घर की तरफ चल दिए। नीना के लिए ये दिन, एक बहुत सुंदर यादगार दिन बन चुका था। जिसकी तुलना किसी भी भौतिक वस्तु से नहीं की जा सकती थी। यह प्रकृति हमें कितना आनंद देती है, कितनी वस्तुएं व सुख देती है, पर इंसान नादानी में इस पर प्रहार करता है,अत्याचार करता है। इस अमूल्य सुख को पाकर सागर इन विचारों में डूबा हुआ था।
— निशा नंदिनी भारतीय