ग़ज़ल
एक नहीं कई बार लिखे हैं
जलते ,शेर,हज़ार लिखे है
सुनकर जिनसे आग लग जाए
कुछ ऐसे अशआर लिखे हैं
तुमने हमको रोका टोका
पर हमनें हर बार लिखे हैं
सत्य की राह पर अडिग रहे जो
हमनें वही सरदार लिखे हैं
बैठ किनारे नहीं लजाया
तूफ़ान ओ मझधार लिखे हैं
सच सबको बतलानें की ख़ातिर
जलते हुऐ अख़बार लिखे हैं
सर पर लाठी डंडे खाये
तब सच्चे समाचार लिखे हैं
हाँ में हाँ कभी नहीं मिलाई
हरदम सत्य विचार लिखे हैं
बहुत मना किया था तुमनें
फ़िर भी कई कई बार लिखे हैं
मेरे आसपास थे जो पारस
हमनें वही किरदार लिखे हैं
— डॉ रमेश कटारिया पारस