कविता

तृष्णा

तृष्णा पाल रहा इंसान
शरीफों का काम तमाम
बौद्धिक  सुख  के  लिए
इंसान खो रहा पहचान।।
जात पात भेद भाव
छल कपट द्वेष तृष्णा
अंग अंग धारण कर
जैसे हो इनका गहना।।
वेद पुराण शास्त्र योग
सबसे बड़ा बना भोग
झूठ फरेव और लालच
इंसान का है  बडा रोग।।
—  आशुतोष

आशुतोष झा

पटना बिहार M- 9852842667 (wtsap)