दोहे – कर निद्रा का त्याग
हमको आशाहीनता, कर देती है चूर।
नित ही खुशियों से हमें, रखती कोसों दूर।।
नाकामी के बाद तुम, फिर से करो प्रयास।
उद्यम तेरा एक दिन, देगा तुझे विकास।।
होकर कभी निराश तुम, फिर से भरना आस।
आगत हों जब आँधियाँ , होना नहीं उदास।।
भस्माने प्रति विघ्न, पोषित कर ले आग।
पाने अपने ध्येय को, कर निद्रा का त्याग।।
साहस रख चलना डगर, होना नहीं निराश।
विपद से समर के लिए, हिय में भरना आश।।
— अनुज पांडेय