बारिश की बूंदें
ये बारिश की बूंदें, ये सावन का मौसम
क्या तुम्हें याद है जब मिले थे प्रिये हम।
ये बारिश की बूंदें, ये सावन का मौसम,
गलियों में अपने तुम घूम रही थी
बारिश की बूदों में झूम रही थी
आज वही फिर से बरसात आई
साथ जुड़ी अपनी वह बात लाई
यादों में आंखें हुई देखो फिर नम
ये बारिश की बूंदेंं ये सावन का मौसम।
क्या तुम्हें याद है जब मिले थे प्रिये हम
कड़की थी बिजली बड़ी जोर से जब
घबरा कर आई मेरे पास तुम तब
निगाहें मिली थी दिल खो गया था
जाने क्या इस दिन मुझे हो गया था।
इक छतरी नीचे दोनों खड़े थे
इश्क में घायल हुए हम पड़े थे
आज बिछड़ने का तुमसे है यह ग़म
ये बारिश की बूंदें ये सावन का मौसम।
मेरे दर्द-ए-दिल को जगाया था तुमने
जुल्फों का कैदी बनाया था तुमने
जख़्म-ए-दर्द का न मरहम मिला है
तेरे इश्क़ का मुझ पर ऐसा सिला है
हिज्र का यह दर्द नहीं होता है कम
ये बारिश की बूंदें, ये सावन का मौसम
क्या तुम्हें याद है जब मिले थे प्रिये हम।
— रवि श्रीवास्तव