गीतिका/ग़ज़ल

छाया

तेरी आंचल की छाया में बैठा रहूं

लोरियां तू सुनाएं और मैं लेटा रहूँ।
थका हूँ जिंदगी की उलझन में मां
फैला दे अपना आंचल मैं सोता रहूं।
भाग-दौड़ ने इतना अकेला किया
बचपन की याद को सोचता मैं रहूँ।
पिता का वो दुलार कहाँ खो गया
सिर्फ तस्वीरों को देखता मैं रहूं
पेड़ की छाया में बैठ जाते थे तब
लौटकर आऊं गांव यह कैसे कहूँ।
खुदा तू रवि पर करम कर इतना
माता-पिता के छाये में हरपल रहूँ।

रवि श्रीवास्तव

रायबरेली, उत्तर प्रदेश 9718895616