लघुकथा

यादें

बिटियाँ को माँ का प्यार देकर बड़ा किया। पत्नी जब बिटियाँ पांच साल की थी तब गंभीर बीमारी की वजह से चल बसी।बिटियाँ को माँ का प्यार तो नही मिल सका।पिता ने ही अपने हिस्से में से माँ के लाड़ प्यार की भूमिका निभाके बड़ा किया।बिटियाँ बड़ी होकर विदेश ब्याही गई।अकेली विदेश में कांच की खिड़कियों से झांक कर मृगतृष्णा निगाह से रिश्तों को ढूंढती रहती।मगर परदेश में ये सब भला क्या मुमकिन।शायद नही।जब छोटी थी तो हवाईजहाज की आवाज आकाश में सुनकर निहारती ।तब भी उसमे कोई नजर नही आता था।आज खुद हवाईजहाज में बैठ कर ऊपर से देखने पर अपना शहर नही दिखाई देता।बस निगाहे ढूंढती रहती।हवाईजहाज से जाते और आते समय नयन सजल हो उठते। परदेश होता ही अपनो से दूर जाने को।जहाँ वापस आने को कम समय और आकांक्षा ज्यादा। खुशी भी समाहित रहती है।कि बिटियाँ विदेश में है।जिंदगी के रिश्ते दो राहों में बट जाते है।देश मे माता पिता, भाई बहनों और अन्य रिश्तों की फिक्र ।विदेश में पति की सेवा । दूरियां को निभाने के लिए मोबाइल ही एकमात्र सहारा है।जो हाल बता सकें।जब मोबाइल पर बात होती तो।सारे दिन बातो  की ही चर्चा होती।पूरा दिन खुशमय हो जाता।रिश्तों में बात करने पर ही जान आजाती।यह सच भी है कि बात करना जरूरी है। नही तो रिश्ते बेजान हो जाते है।औऱ दूरिया बढ़ जाती है।बात करने पर आत्मबल मजबूत होता है।और लगने लगता हैकि अपना भी कोई दुनिया मे जो ख्याल रखता है।यदि मोबाइल पर संदेश या बात नही होती।तो मन के साथ आंखे भी रोने लगती।आँखियो का सारा काजल बह जाता।विषम परिस्थियों में दुखद घटना के समाचार से रिश्तो को सांत्वना मोबाइल पर ही दी जाती है।क्या करें रिश्ते अब जा बसे सात समंदर पार।किन्तु सिसकने की ध्वनि मोबाइल में स्पष्ट सुनाई देती।बस सर पर हाथ रखने वालों या आंसूं पोछने वाले नही मिल पाते ।सब कुछ अपने को ही करना होता।अभिव्यक्ति, अंतर वेदना को कौन सुनता है विदेश में। रीति रिवाजों का आवरण विदेशो में काम नही आता।ये सब कुछ यहां ही चलता है।वहां सब कुछ अलग ।समय,खाना, पहनावा,भाषा आदि सब कुछ अलग।

यहां का राग यही सुना जाता।बस यादें ही साथ जाती है।स्मृति पटल पर यदि कोई रिश्ता जवां है।तो बरसो बाद उसकी खबर बूढे होने या गुजर जाने की सुनकर आश्चर्य अवश्य होता है।क्योंकि स्मृति पटल पर उसकी छवि जब देखा था तब के मान से अंकित रहती है।कुल मिलाकर साथ हमेशा यादे ही जाती है।और उसीकी खेर खबर में जिंदगी कई पग उम्र के रास्ते नाप लेती है।देश विदेश की दूरियां रिश्तों को वार्तालाप के खाद से पोषण कर मृगतृष्णा के पोधो को बड़ा कर देती है।अपना कोई विदेश में बसा हो तो बात अवश्य करना चाहिए।ताकि व्यवहार में सदा मिठास घुली रहे।और अपनत्व अपना रास्ता नही भूले।
— संजय वर्मा ‘दृष्टि’

*संजय वर्मा 'दृष्टि'

पूरा नाम:- संजय वर्मा "दॄष्टि " 2-पिता का नाम:- श्री शांतीलालजी वर्मा 3-वर्तमान/स्थायी पता "-125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर जिला -धार ( म प्र ) 454446 4-फोन नं/वाटस एप नं/ई मेल:- 07294 233656 /9893070756 /[email protected] 5-शिक्षा/जन्म तिथि- आय टी आय / 2-5-1962 (उज्जैन ) 6-व्यवसाय:- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) 7-प्रकाशन विवरण .प्रकाशन - देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ व् समाचार पत्रों में निरंतर रचनाओं और पत्र का प्रकाशन ,प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक " खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान-2015 /अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित -संस्थाओं से सम्बद्धता ):-शब्दप्रवाह उज्जैन ,यशधारा - धार, लघूकथा संस्था जबलपुर में उप संपादक -काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ :-शगुन काव्य मंच