कविता

समय का संदेश

मिल गया समय मुझे
सोचा कुछ गुफ्तगू कर लूं
बैठ जाऊँ उसके साथ मैं
और नई इबारत लिख दूं।।

ले चलूँ उसे फिर वहां
जहां से की शुरुआत थी
बचपन के वो दिन थे
और खुशियों की सौगात थी।।

भर लूँ उसको बाहों में
जाने फिर कभी ना दूँ
मुट्ठी में अपनी कैद करूँ
या पल्लू में अपने बांध लूं।।

था बड़ा चंचल सा वो
हाथ ना फिर मेरे आया
फिसल गया मुट्ठी से मेरी
चाल पर अपनी इतराया।।

कह गया जाते-जाते
लौटकर नहीं मैं आता हूं
जी ले मुझे जी भर कर
अभी जो मैं तेरे साथ हूं।।
प्रो.वन्दना जोशी

प्रो. वन्दना जोशी

प्रोफेसर पत्रकारिता अनुभव -10 वर्ष शैक्षणिक अनुभव- 10 वर्ष शैक्षणिक योग्यता- एम.कॉम., एम.ए. एम.सी., एम.एस. डब्ल्यू., एम.फील.,बी.एड., पी.जी.डी. सी.ए.