पुरुष और स्त्रियों में एक-दूसरे से संबंध कितनी और क्यों हो ?
फेमिनिज्म क्या है ? पुरुषों के संसर्ग स्त्रियों का न रहना या पुरुष नाम से ही चिढ़ होना या पुरुषों के डिक्टेटरशिप या दादागिरी से मुक्ति पाना ! लोग फेमिनिज्म की बात करते हुए ‘पत्नियों पर नोट्स’ लिख डाले हैं । आखिर क्यों जरूरत पड़ी- पत्नियों पर नोट्स लिखने की ? शादी ही नहीं करते यानी इच्छा भी और नोट्स भी ! एक वर्ग ऐसा भी है, जो कि ‘पौरोणिक-कथा’ लिखते हुए ‘पुरुषप्रधान’ समाज की व्याख्या कर बैठते हैं ! क्या उन्हें आज के उदाहरण नहीं नजर आ रहे ? यह तो पुरुषों की बात हुई, किन्तु महिलाएँ भी फेमिनिज्म का ढिंढोरा पीटकर पुरुष पिता या पति या प्रेमियों के नाम या उपनाम ढोये रहती हैं। यह कौन से फेमिनिज्म है? मंत्री तक ऐसे नाम-उपनाम ढोयी या ढो रही हैं ! ऐसे पुरुष भी हैं, जो महिला के नाम-उपनाम लगाए हैं, फ़िल्म इंडस्ट्री में देख लीजिए।
100 में 100 प्रतिशत कोई सही नहीं हैं, न महिलाएं , न पुरुष ! थर्ड जेंडर यानी LGBTQ की बात भी जुदा नहीं है, वे बच्चे पैदा नहीं करते, किन्तु घर्षण तो करते हैं ! दरअसल, देखा जाय तो सेक्स में क्या होता है ? घर्षण ही तो ! चमड़े या त्वचा का खेल ही तो ! यह सिर्फ आकर्षण नहीं है, अपितु हार्मोन का कमाल है । रज, वीर्य तो उन्मादी होते हैं ! अगर लिंग या गुप्तांग छूते हैं, तो छूते ही सेक्स की इच्छा बलवती हो जाती है और क्रमश: मर्द या औरत नहीं मिलने पर मर्द हैं तो लिंग की सुपारी आगे-पीछे कर या औरत हैं तो योनि में अँगुली या अँगुलियाँ या लम्बे बैंगन आदि डाल-निकाल, डाल-निकाल की पुनरावृत्ति कर हस्तमैथुन करते हैं । अगर यह भी नहीं करें, तो बलातप्रवृत्ति बढ़ती चली जायेगी ! फिर हस्तमैथुन सही प्रक्रिया है, किन्तु इस प्रवृत्ति की अति नहीं हो !
क्योंकि पुरुष मानसिक विद्रूपता लिए शारीरिक हवस पूरा करने के लिए बेटी, बहन, पत्नी और माँ तक को ‘वेश्या’ बना बैठते हैं ! कभी-कभी स्वैच्छिक होता है, कभी-कभी बहला-फुसलाकर, कभी-कभी जबरदस्ती ! ….लेकिन होती है कुछ न कुछ, भले ही इसे हम घरेलू यौनहिंसा कह लें ! क्या होते हैं, मर्द जब गोद लड़कियों को बैठाते हैं या नातिनी-पोती का चुम्मा लेते हैं ? यह भावनावश है, किन्तु इनमें जब थोड़ी सी भी विचलन आयी कि इसे हम घरेलू यौनहिंसा की संज्ञा दी बैठते हैं, तो क्यों हम निकटता हासिल करते हैं ? मर्द खाट या खटिया आदि के छेदों में लिंग प्रवेश कराकर और किसी महिला की कल्पना कर 61-62 करते हैं यानी हस्तमैथुन करते हैं । हस्तमैथुन सच्चाई है !
यह तयशुदा सच है, समाज में या परिवार में या भीड़ में अगर हम रहेंगे, तो 99% यही गारंटी रहेगी कि हम संत रह नहीं पाएंगे, न ही संन्यासी, न ही योगी ! हम सिर्फ व सिर्फ भोगी रहेंगे ! स्त्रियाँ भी छाती और नितंब छोड़ से जब किसी से टकराती हैं या उनकी स्तन किसी तरह दब जाती है या पलंग, चौकी, टेबल के किनारे से उनकी योनि चुभ रही होती हैं, तो उनमें अनायास खुजलाहट या स्फुरण आती होंगी, कालांतर में अँगुलीमैथुन या फिंगरिंग उनके सायास हो उठते हैं । महिलाएँ भी छोटे भाई, देवरादि से कुछ न कुछ यौनेच्छा की पूर्त्ति करती रहती हैं ! तुलसीदास भी नारीवियोग से पीड़ित रहे, तो संत कबीर भी शादी किये थे और उनके भी बच्चे थे ! प्रश्न है, संतानप्राप्ति कैसे हुई ? सेक्स से ही न !
संभोग या हस्तमैथुन या घर्षण 99% पुरुष, महिलाएँ या थर्ड जेंडर भी करते हैं, 1% जो कहते हैं, वे नहीं करते हैं, झूठ बोलते हैं ! वहीं कई महिलाएं भी ‘जिगोलो’ को ढूढ़ती फिरती हैं, क्योंकि अगर एकबार भी शारीरिक-संबंध किसी से बन गए, तो लिंग यानी योनि के हस्तस्पर्शन से भी पुरुष या महिलाएँ अलग-अलग भी विचलित हो उठते हैं । पति द्वारा समय नहीं दिए जाने पर या बड़े पद या व्यवसाय में रहने पर वे नौकर-चाकर से भी संबंध बना लेती हैं, यह सच है और सच तो रिश्तेदारों से भी शारीरिक-संबंध होने में है।
पति से काफी समय से दूर रही महिलाएँ या पति से अलग रह रही महिलाएँ सतीत्व खो बैठती हैं, क्योंकि अगर शादी आवश्यक है तो सेक्स भी आवश्यक है । वहीं पति बाहर रहकर विपरीत आकर्षण के प्रति आकर्षित हो ही जाते हैं, वहीं पत्नियों में लोक-लाज का भय लगी रहती है, किन्तु एक सीमा तक ही न ! पेट की आग बर्दाश्त कर ले, किन्तु योनि की आग कौन शांत करे ? तभी तो वो ‘जिगोलो’ के तलाश में रहती हैं और उसपर रुपये भी खर्च करती हैं ! यह जिगोलो को हम पुरुषवेश्या कहेंगे या पुरुषमित्र ! शिक्षामित्र या बैंक मित्र की भाँति ! ऐसे में महिलाएँ या पुरुष पक्ष सामाजिक प्रतिष्ठा को देखते हुए ‘हस्तमैथुन’ पद्धति को अपना लेते हैं। विकिपीडिया के अनुसार, ‘हस्तमैथुन’ भी सेक्सपूर्त्ति का हल है ! यह गलत नहीं है, चाहे पुरुष के लिए हो या स्त्री के लिए !