कविता

वो सड़क का मोड़

वो सड़क का मोड़
आज भी उदास तन्हा
शांत बेबस है मन के जैसे
जहां से तुम गये थे होकर
जुदा हम से …
न रही कोई चहक
न रही कोई महक
न रहा कोई सवाल
न रहा कोई जवाब
बस बिखरी रहती है
बेनाम सी उदासी
इस सड़क के सन्नाटे जैसी
एक टक अक्सर देखती रहती हूँ
सड़क के उस मोड़ को
जहां से हाथ हिलाते हुए
अपने आँसूओं को छिपाते
टैक्सी में बैठ भारी मन से
दे दिलासा हमें चले गये थे
नयी जगह नया शहर नया काम
और पीछे रह गयी थी
अनकही पीड़ा थमे आँसू
पथराए से लब और
खामोश आँखे ढूंढती रहती हैं
तुम्हें हो कर  मायूस
घर के हर कोने
पर गुज़रे लम्हे से तुम
कहीं नहीं मिलते पूरे घर में
होकर हताश दौड़ कर फिर
एक टक ताकने लगती हूँ
वो सड़क का मोड़
जहाँ वो लम्हा आज भी थमा है
हमारी थमी सी ज़िन्दगी के जैसे।।
— मीनाक्षी सुकुमारन

मीनाक्षी सुकुमारन

नाम : श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जन्मतिथि : 18 सितंबर पता : डी 214 रेल नगर प्लाट न . 1 सेक्टर 50 नॉएडा ( यू.पी) शिक्षा : एम ए ( अंग्रेज़ी) & एम ए (हिन्दी) मेरे बारे में : मुझे कविता लिखना व् पुराने गीत ,ग़ज़ल सुनना बेहद पसंद है | विभिन्न अख़बारों में व् विशेष रूप से राष्टीय सहारा ,sunday मेल में निरंतर लेख, साक्षात्कार आदि समय समय पर प्रकशित होते रहे हैं और आकाशवाणी (युववाणी ) पर भी सक्रिय रूप से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे हैं | हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रहों .....”अपने - अपने सपने , “अपना – अपना आसमान “ “अपनी –अपनी धरती “ व् “ निर्झरिका “ में कवितायेँ प्रकाशित | अखण्ड भारत पत्रिका : रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक में भी कविता प्रकाशित| कनाडा से प्रकाशित इ मेल पत्रिका में भी कवितायेँ प्रकाशित | हाल ही में भाषा सहोदरी द्वारा "साँझा काव्य संग्रह" में भी कवितायेँ प्रकाशित |