वो सड़क का मोड़
आज भी उदास तन्हा
शांत बेबस है मन के जैसे
जहां से तुम गये थे होकर
जुदा हम से …
न रही कोई चहक
न रही कोई महक
न रहा कोई सवाल
न रहा कोई जवाब
बस बिखरी रहती है
बेनाम सी उदासी
इस सड़क के सन्नाटे जैसी
एक टक अक्सर देखती रहती हूँ
सड़क के उस मोड़ को
जहां से हाथ हिलाते हुए
अपने आँसूओं को छिपाते
टैक्सी में बैठ भारी मन से
दे दिलासा हमें चले गये थे
नयी जगह नया शहर नया काम
और पीछे रह गयी थी
अनकही पीड़ा थमे आँसू
पथराए से लब और
खामोश आँखे ढूंढती रहती हैं
तुम्हें हो कर मायूस
घर के हर कोने
पर गुज़रे लम्हे से तुम
कहीं नहीं मिलते पूरे घर में
होकर हताश दौड़ कर फिर
एक टक ताकने लगती हूँ
वो सड़क का मोड़
जहाँ वो लम्हा आज भी थमा है
हमारी थमी सी ज़िन्दगी के जैसे।।
— मीनाक्षी सुकुमारन