अध्यापकीय पीड़ा का प्रकटीकरण
शिक्षकों की पीड़ा को जानने की कहानी द्रष्टव्य है। अगर नियोजित शिक्षकों के प्रति सरकार किसी प्रकार से दुराग्रह से दूर रहें, तभी इन नियोजित शिक्षकों की सेवा शर्त्त बन सकती है। बिहार सरकार को शिक्षकों, खासकर नियोजित शिक्षकों की सुननी चाहिए।
अब तक स्कूल खुला/खुली नहीं, पर बिहार सरकार ऐसे शिक्षकों को हड़ताल तोड़कर स्कूल भेज रहे, भले वहाँ विद्यार्थी रहें या नहीं ! फ़िल्म ‘चॉक एंड डस्टर’ हर सरकारों को देखनी चाहिए !
वर्ष 2006 से ही बिहार में नियोजित शिक्षकों की बहाली शुरू है, किन्तु 13 वर्षो के बाद भी वे सरकारी सेवक नहीं बन पाए हैं, जबकि चुनाव सहित कई आपदाजनित और संवेदनशील कार्यों में उन्हें झोंके जा रहे हैं । अब जाकर सेवाशर्त्त विषयक पूर्ण कमिटी बनी है, किन्तु कार्यान्वयन नील बटे सन्नाटा ।