ज़िम्मेदार कौन?
कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। यह देख रमेश की माता जी बहुत घबराई हुई थीं। सारे एहतियात बरत रहीं थीं। घर में ६ सदस्य थे। सभी पूरे साल अपने-अपने काम में व्यस्त रहते थे। अब इस बीमारी के चलते सब उनके पास घर से ही काम कर रहे थे। इसलिए उनको अब अकेलापन महसूस नहीं हो रहा था। बस! बड़ा बेटा जो केंद्रीय कर्मचारी था उसको रोज़ जाना होता था।
उनकी चिंता का सबसे बड़ा कारण यह भी था कि बड़े बेटे को डायबिटीज़ जैसी घातक बीमारी थी। वे रोज़ ऐसी खबरों से वाक़िफ़ थीं कि डायबिटीज़ वाले मरीज़ों को यह जल्द अपनी चपेट में ले लेता है। बेटे को समझातीं तुम भी घर से काम करा करो। पर वह माँ को समझा देता कि माँ हमको छुट्टी नहीं मिल रही है।
घर में सभी अपने-अपने तरीक़े से रमेश को समझा रहे थे। वह अब ग़ुस्से में आगबबुला हुआ जा रहा था। माँ ने देखा कि वह नहीं मानने वाला, तब उन्होंने उससे एक प्रश्न किया? ‘अगर भूले-भटके यह वायरस तुमको पकड़ ले तो हमारे द्वारा लिए गए सारे एहतियात बेकार हो जाएँगे। हम सब भी इसकी चपेट में आ जाएँगे। इसका जिम्मेदार तुम होंगें या सरकार?’
इतना सुनकर वह मौन हो गया और सोचने लगा कि बात तो माँ पते की कह रही हैं। पर सरकार को कैसे समझाऊँ?
मौलिक रचना
नूतन गर्ग (दिल्ली)