अंध-अविश्वास
कितना लगता है वक्त,
प्रथा को कुप्रथा बनने में?
उतना ही जितना
एक मुंह से एक शब्द निकलने के बराबर
और वह शब्द है – अंधविश्वास।
बिना चर्चा की समझ हो
या बिना समझ की चर्चा।
ना जानने के कारण – मानना भी हो जाता गलत!!
खैर,
ये तो मानो –
अंधविश्वास की तरह ही
अंधअविश्वास भी होता है।
बंद कर आंखें किसी भी बात को ‘ना’ मानना।
और चाहो तो ये भी ना मानो!!
क्योंकि बची कहां शोध की सम्भावना।