कर दो तुम मेरा उद्धार
तुम मेरी रचना बन जाओ बन जाऊं मैं रचनाकार
सृजन सहज हो जाए मेरा लिखना हो जाए साकार..।।
शब्द शिल्प में रसता दे दो उसे अलंकृत कर दूं मैं
मेरी कविता तुम बन जाओ इतना बस कर दो उपकार..।।
छंद सोरठा दोहा लिख दूं बस मेरी उपमा बन जाओ
हो जाए फिर काव्य विभूषित तुमसे है बस यही पुकार..।।
लेखन विधा मेरी बन जाओ विधिवत हो जाए फिर कार्य
रूप रंग परिभाषित कर दूं आग्रह बस कर लो स्वीकार..।।
साधक मैं भी बन जाऊं साधना मेरी तुम बन जाओ
हो जाऊं कृतज्ञ तुम्हारा कर दो तुम मेरा उद्धार..।।
— विजय कनौजिया