कहाँ गई गौचर भूमि ?
गोप्रचारं यथाशक्ति यो वै त्यजति हेतुना।
दिने दिने ब्रह्मभोज्यं पुण्यं तस्य शताधिकम्।।
तस्माद् गवां प्रचारं तू मुक् त्वा स्वर्गात्र हीयते।
यश्छिनत्ति द्रुम पुण्यं गोप्रचारं छिनत्यपि।।
तस्यैकविंशपुरुषाः पच्यन्ते रौरवेषु च।
गोचारध्नं ग्रामगोपः शक्ति ज्ञात्वा तू दण्डयेत्।।
(पद्मपुराण,सृष्टि० ५१।३८-४०)
अर्थ: ‘जो मनुष्य गौओं के लिए यथाशक्ति गोचरभुमि छोड़ता है, उसको प्रतिदिन सौसे अधिक ब्राह्मण भोजनका पुण्य प्राप्त होता है। गोचर भूमि छोड़नेवाला कोई भी मनुष्य स्वर्ग भ्रष्ट नहीं होता। जो मनुष्य गोचरभूमि रोक लेता है और पवित्र वृक्षों को काट डालता है। उसकी इक्कीस पीढ़ी रौरव नरक में गिरती है। जो व्यक्ति गौओंके चरने में बाधा देता है, समर्थ ग्रामरक्षक को चाहिए कि उसे दण्ड दे।’
गोचर भूमि अर्थात गोवंश के चरने की भूमि। भारत की स्वतंत्रता के पहले भी भारत में गोचर भूमि का प्रतिशत बहुत अधिक था, बड़ी गोवंश संख्या को केवल चारागाह में ही सुरक्षित रखा जा सकता है, इन्हीं चरागाहों को संविधान में गोचर भूमि कहा गया । गौ भारत के लिए आस्था का विषय रहा। गोवंश किसान की आर्थिक तरक्की का एक स्तंभ भी रहे, चाहे गरीब किसान हो या अमीर गोवंश की बड़ी संख्या से उसे आर्थिक लाभ सदैव ही मिलता रहा। जहां गोवंश खेती के कामों में उपयोग होने के कारण मूल्यवान था, उसी प्रकार उनका गोबर भी अच्छे जैविक खाद के रूप में खेतों के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ। जिनमें दूध गोमूत्र एवं आदि पंचगव्य से बनी विभिन्न औषधियों से समाज को स्वास्थ्य लाभ की दिशा मिली है, प्राचीन आयुर्वेद में भी गोवंश के पंचगव्य का विशेष महत्व बताया है जो कि कई तरह की बीमारियों को समाप्त करने व शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए आवश्यक होता है। इसी कारण प्राचीन काल से ही बड़ी संख्या में गोवंश को रखने के लिए चारा गाहो की व्यवस्था थी। गोपालक सुबह गोवंश को चराने के लिए चारा गाहो में लेकर जाते व शाम को वापस गांव में लेकर आते थे। उनका यही काम होता है इसके निमित्त गांव वाले गोपालकों को धान व अन्य वस्तुएं देते थे यह साधारण व्यवहार गांव की आजीविका का बड़ा केंद्र था क्योंकि कृषि गौ आधारीत थी इसी कारण गौवंश का बहुत महत्व था परंतु आधुनिक कृषि के आते ही मशीनरी के बढ़ते उपयोग के कारण गोवंश खेतों से बाहर हो गया। तथा उनके चारागाहो पर मनुष्य ने कब्जा कर लिया कहीं वनों को काटकर तो कहीं शासकीय भूमि को अपने कब्जे में लेकर मानव ने समस्त गोचर भूमि को हथिया लिया । आज यदि हम भारत के किसी प्रदेश की स्थिति देखें तो यह दुर्लभ ही होगा कि किसी विभाग के पास गोचर भूमि का कोई आंकड़ा उपलब्ध हो । इंग्लैंड हरेक पशु के लिए औसतन 3.5 एकड़ जमीन चरने के लिए अलग रखता है। जर्मनी 8 एकड़, जापान 6.7 एकड़ और अमेरिका हर पशु के लिए औसतन12 एकड़ जमीन चरनी के लिए अलग रखता है। इसकी तुलना में भारत में एक पशु के लिए चराऊ जमीन 1920 में 0.78 एकड़ अर्थात अंदाजन पौने एकड़ थी। (Agricultural Statistics of India, 1920/21, Vol.1, Table 1, 2 – 5) अब यह संख्या घटकर प्रति पशु 0.09 एकड़ हो गई है।
राजस्थान में तो गौ मंत्रालय भी है परंतु फिर भी गोचर भूमि के अतिक्रमण का कोई उपाय राजस्थान सरकार नहीं कर पाई। मध्य प्रदेश सरकार ने भी गोवंश संरक्षण से संबंधित एक आयोग बना कर अपने राज्य मंत्री स्तर के व्यक्ति को उसका प्रमुख बनाया विभाग तो चला परंतु गोचर भूमि के संबंध में कोई अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही प्रकाश में नही आ सकी। मध्यप्रदेश में नई सरकार बनने पर कई पंचायतों में गौशालाओं का निर्माण हुआ, अब आवश्यक यह है कि इनका संचालन सही तरीके से सक्षम समिति द्वारा हो सके इसका प्रबंध होना चाहिए । अब जबकि सोशल मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इतना जागृत है की किसी भी विषय को उठाकर वह उसे न्याय दिलाने मैं सक्षम हो चुका है तो हमें भी गोवंश के संरक्षण के लिए भारत में गोचर भूमि की उपलब्धता और उस पर हुए अतिक्रमण को हटाने के उपाय पर जनप्रतिनिधियों से प्रश्न करना होंगे यह प्रश्न प्रशासनिक अधिकारियों के लिए भी हैं क्योंकि उनकी जिम्मेदारी देश की जनता के प्रति है किसी सरकार के प्रति नहीं इसलिए यह आवश्यक है की भारत की समस्त गोचर भूमि को अतिक्रमण मुक्त करके शहरों में आवारा घूमने वाले गोवंश व पशुओं को उनका सही स्थान प्रदान करें, क्योंकि आवारा वह नहीं है उनका अधिकार छीना गया है। उनकी भूमि पर हमने अतिक्रमण किया, इस कारण उन्हें न्याय दिलाने के लिए कुछ लोगों को आगे आना ही होगा। हमने केवल नगरपालिका व नगर निगम को घूमते पशुओं का जिम्मेदार मानकर इति श्री कर ली जबकि जिम्मेदार हम सभी है जिन्होंने गौचर भूमि की चिंता नही की। क्योंकि प्रकृति का यही असंतुलन भीषण त्रासदी बनकर हम सबके दुख का कारण बनेगा। आवश्यक है उससे पहले हम जाग जाएं। विश्व का गौ विहीन होना, एक नए युग को जन्म देगा, जो संक्रमण और रुग्ण वातावरण से भरा होगा। क्या आने वाली पीढ़ी को हम ऐसा भविष्य देकर जाने वाले है ? प्रश्न आप सभी से है।
(संकलन : आकड़ें व कुछ जानकारी गौ क्रांति दल केे पेज, पद्म पुराण से ली गई।)
— मंगलेश सोनी