ग़ज़ल
पेड़ हर मोड़ पर इक लगा दीजिए।
कुछ धरा का प्रदूषण घटा दीजिये।
और कुछ खूबसूरत बना दीजिए।
नफरतों को वतन से हटा दीजिए।
बस चुके हैं नगर नफरतों के बहुत,
प्यारके अबनगर कुछबसा दीजिए।
अन्नदाता हमारे हैं मुफलिस बहुत,
अब किसानों को पूरानफा दीजिए।
ज़ह्न से एकपल को न जाये ख़ुदा,
इसतरह का कोई अबनशा दीजिए।
कब्र गहरी कहीं इक बड़ी खोदकर,
नफरतों को उसी में दबा दीजिये।
— हमीद कानपुरी