परेशान बहुत है
यह बारिश का पानी
हो गई व्यर्थ अब
नानी की कहानी।
कागज की नाव का न पानी में बहना
न छत पर छम-छम कर
भीगते बच्चों का डोलना
बारिश में नहाना खेलना-कूदना
हुड़दंग मचाना
अब बातें ये सब हो गई पुरानी।
हो गई व्यर्य अब
नानी की कहानी।
न घटाओं को निहारती बोझिल सी आँखें
न करती इंतजार सावन का
कोमल सुकुमारियों की बांहें
न साथी न संगी
न खेल न तमाशा
अब सब कुछ है नकली
सब कुछ बेमानी
हो गई व्यर्थ अब
नानी की कहानी।
न बदलों संग उड़ते
अबोध शिशुओं का झुंड
न इंद्रधनुषी रंगों में रंगें
बच्चों साथ बुजुर्गों का संग
अब न होती सुनहरी सुबह
न होती खिलखिलाती सांझ।
बेचैनी की चादर लपेटे अब हर किसी की
कुछ न कुछ परेशानी।
हो गई व्यर्थ अब
नानी की कहानी।
न अमवा की डाली पर
पैंग बढ़ाती किशोरियाँ
न कदंब की छाया में
हिंडोले का गीत गाती नारियाँ
न गलबहियां डाले झूला झूलती टोलियां।
अब सब कुछ नेट पर ढूंढती
यह अंगुलियाँ दीवानी
हो गई व्यर्थ अब
नानी की कहानी।
— निशा नंदिनी भारतीय