ग़ज़ल
हुक्म की तामील करना कोई’ बेदाद नहीं
बादशाही सैनिकों से कोई’ फ़रियाद नहीं |
“देशवासी की तरक्की हो” पुराना नारा
है नई बोतल, सुरा में तो’ ईजाद नहीं |
भक्त था वह, मूर्ति पूजा की लगन से उसने
द्रौण से सीखा सही वह, द्रौण उस्ताद नहीं |
देश है आज़ाद, हैं आज़ाद भारतवासी
किन्तु दकियानूसी’ धार्मिक सोच आज़ाद नहीं |
लूटने का मामला है, लूटते सब नेता
दीखते ये नेक पर ये, कोई’ अपवाद नहीं |
चोंच से चुगकर सभी खाए परिंदे जैसे
सब गए छुट्टी बिताने कोई सैय्याद नहीं |
प्रेम आँगन में बहारें आती’ थी बिन मधुमास
अब सनम वो प्यार का जागीर आबाद नहीं |
जुमले’ बाजी में मज़ा आता था’ पहले पहले
किन्तु अब तो सब पुराने जुमले’ में शाद नहीं |
करलो’ जितने चाहे’ झूठे वादे’ सब करते हैं
ये चुनावी खेल में कोई भी’ तो बा’द नहीं |
जन्म हिन्दुस्तान, पाकिस्तान की गाते गीत
देश द्रोही जो है’ ‘काली’ बैध औलाद नहीं |
शब्दार्थ :
बेदाद : अत्याचार ; ईजाद =नयापन
सैय्याद = चिड़ीमार, व्याध,
शाद =ख़ुशी , बा’द=पीछे
कालीपद ‘प्रसाद’