ग़ज़ल
जनता’ दिलगीर है’ शासन अभी गंभीर नहीं
देश है जनता’ का’ नेता की’ ये’ जागीर नहीं |
अंध विश्वास कि सब भाग्य से’ मिलते हमको
कर्म फल जो मिले’ इस जन्म में’ तकदीर नहीं |
तेरे’ आने से’ मुझे मिलता’ है’ आनंद बहुत
चाहता है तो’जा’ पैरों में’ तो’ जंजीर नहीं |
नीति कहती कि विरोधी को’ सजा देना किन्तु
न्याय के साथ खडा होना तो’ तकसीर नहीं |
वीरता की तेरी गुंजार विरोधी दल में
खुंचका शत्रु, तेरे हाथ में शमशीर नहीं |
ठण्ड बेदर्द है’ जल वायु बने हिम प्रस्तर
तू भी’ नाराज तेरा प्यार की तासीर नहीं |
कोई मुझको ये’ बता दे कि भुलाएँ कैसे
याद उसकी सदा’ आती, मिटी तस्वीर नहीं |
नेता’ बेपीर है’ व्याकूल है’ जनता दिन रात
जनता’ मुहताज है’ कंगाल है’ बेपीर नहीं |
रहनुमा ने दिया’ धोखा, ना निभाया वादा
जनता’ को खौफ नहीं और वो दिलगीर नहीं |
सूर्य डूबा है’ सितारे भी चमकने लगे हैं
दूर आकाश में ‘काली’ नया यामीर नहीं |
दिलगीर=दुखी , तकसीर=अपराध
बेपीर =निर्दयी ,खुंचका=घायल, यामिर =चाँद
कालीपद ‘प्रसाद’