ग़ज़ल
अलग अलग बात करते सब, नहीं जाने ये’ जीवन को
ये’ माया मोह का चक्कर है’ कैसे काटे’ बंधन को|
किए आईना’दारी मुग्ध नारी जाति को जग में
नयन मुख के सजावट बीच भूले नारी’ कंगन को |
सुधा रस फूल का पीने दो’ अलि को पर कली को छोड़
कली को नाश कर अब क्यों उजाड़ो पुष्प गुलशन को|
बदी की है वही जिसके लिए हमने दुआ माँगी
न ईश्वर दोस्त ऐसे दे मुझे या मेरे दुश्मन को |
निगाह तेरी बड़ी पैनी मेरे दिल छेद डाली है
जिगर है खूंचकाँ मेरे, सँभालो नज्र सोजन को |
धरा पर है अभी फिर आसमां पर है, ये’ मन चंचल
नियंत्रण करना’ है मुश्किल बड़ा मन तीव्र तौसन को |
नया मौसम नया दस्ता नया है खेत खलिहान आज
कभी हम देखते हैं खेत फिर आबाद खिरमन को |
लुटेरा और नेता कर्म से तो एक जैसे हैं
भले दो नेता’ को गाली, दुआ ही देना’ रहजन को |
घटा छाया दिवाकर भी छुपा, सावन बहुत रोया
सुनाए ना सुने ‘काली’ हरी चूड़ियों की’ खनखन को |
कालीपद ‘प्रसाद’