ग़ज़ल
मारकर पत्थर न रोको राह, प्यारे,
भष्म कर देगी जलाकर आह, प्यारे।
पत्थरों को चुन नई सड़कें गढ़ेंगे,
तोड़ देंगे छल कपट की चाह, प्यारे।
त्याग साहस से बनी बुनियाद घर की,
मत बनाओ स्वार्थ में ऐशगाह, प्यारे।
चापलूसी में गलत के साथ हो गर,
पारखी कैसे कहेगा वाह, प्यारे।
दूर से नापी न जाएगी नदी,
कूदने से ही मिलेगी थाह, प्यारे।
कागजों के फूल में खुशबू न होती,
बागवाँ से रख न इतनी डाह, प्यारे।
लूटते हो, लूट लो, पर याद रक्खो,
रोकने को है अवध मल्लाह, प्यारे।
— डॉ अवधेश कुमार अवध