आशुतोष है,चंद्रमौली है
आशुतोष है,चंद्रमौली है, शिवशंकर कहलाता है,
महाकाल बनकर के बैठा, वो उज्जैयनी वाला है।
एक हाथ में माला उसके, एक हाथ में भाला है,
एक रूप विकराल है तो, एक सुन्दर सौम्य निराला है।
गल मुंडों की माल है उसके, सिष चन्द्रमा साजा है,
कंठ गरलमय, गंग सिष पर, रूप अघोरी धारा है।
भस्म रमाता तन पर अपने, भांग का भोग लगाता है,
पशुपति है भूतनाथ है, नंदी उसको प्यारा है।
केदारा है, विश्वनाथ है, ये ओंकारेश्वर वाला है,
त्रयंबक है, भीमाशंकर है, सोमनाथ मनभाता है।
नागेश्वर है, घृष्णेश्वर है ,बैद्यनाथ कहलाया है,
मल्लिकार्जुन बनकर इसने अद्भत रूप दिखाया है।
रामेश्वर की पूजा करके, राम दसानन तारा है,
महाकालेश्वर बनकर इसने त्रिपुरासुर संहारा है।
मुंडों का है हार गले में सति पति कहलाता है,
डाकिनी शाकिनी भूत पिशाचिनी सबका ये रखवाला है।
भूतनाथ के स्वेद से, मंगलनाथ रूप धर आया है
काल भैरव बनकर के बैठा, मदिरा भोग लगाया है।
ये उज्जैयनी का है ये राजा, प्रलयंकर कहलाता है
जो भी इसकी शरण में आता भवसागर तर जाता है।
— पंकज कुमार शर्मा ‘प्रखर’
भाला-त्रिशूल
गरलमय-विष से भरा
भूतनाथ- शिव का एक तांत्रिक नाम
स्वेद- पसीना
प्रलयंकर-विनाश करने वाला