सवेरा चाहिए
सरकारी जनादेश की कद्र होनी चाहिए।
सियासत में फैली गंदगी को अब मिटानी चाहिए।
सौदेबाजी का तमाशा खत्म होना चाहिए।
सीधी-सादी जनता को यहाँ निवाला चाहिए।
सियासत के पैंतरे में विकास का पहिया क्यों टूटे?
जनमत के डगमगाहट में जनता को भरोसा चाहिए।
सत्ता- स्वार्थ के लोभ को सदा भूल जाना चाहिए।
लोकतंत्र की गरिमा का सम्मान होना चाहिए।
राजनीति में घिरे तिमिर को उजाला चाहिए।
मीडिया को भी भुनाने का मसाला चाहिए।
हर रोज यहाँ बहस का कोई बहाना चाहिए।
कितनी गिरती जा रही राजनीति मेरे दोस्तों!
काली अंधियारी रात का अब सवेरा चाहिए।
— डॉ. कान्ति लाल यादव