अस्वीकृति
एक दिन जॉर्ज गर्शविन अमेरिका के महान गीतकार के रूप में जाने गए. इसका श्रेय उन्होंने अपनी एक अस्वीकृति को दिया. अक्सर वे मन में इस अस्वीकृति को नमन करते रहते थे.
यह अस्वीकृति उनके लिए अत्यंत असामान्य थी. इसकी सलाह उन्हें तत्कालीन महान गीतकार इरविंग बर्लिन द्वारा दी गई थी, जिनके वे बहुत बड़े फैन थे और उन्हें अपना रोल मॉडल मानते थे, संयोगवश इरविंग से मिलने की उनकी दिली तमन्ना एक कार्यक्रम में पूरी हुई.
”गर्शविन, तुम तो बहुत प्रतिभाशाली गीतकार हो, मैं तुम्हारी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुआ.” इरविंग ने कार्यक्रम समाप्त होने के बाद कहा था. गर्शविन इस बात से अभिभूत हो गए थे. ”मैं तुम्हें इसी समय अपना संगीत सचिव बनाने का प्रस्ताव रखता हूं.” अगले ही पल इरविंग ने कहा था.
गर्शविन की खुशी का ठिकाना नहीं था. गुरु समान व्यक्ति का सान्निध्य, वह भी तिगुने वेतन पर! वे कुछ बोल पाते, इससे पहले इरविंग ने पुनः कहा- ”मेरी इच्छा है, कि तुम मेरे प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दो. मेरे सचिव बनकर तुम मेरे सांचे में ढल जाओगे और दूसरे दर्जे के बर्लिन बनकर रह जाओगे, लेकिन अगर तुम अपने बुनियादी वजूद पर डटे रहोगे, तो किसी न किसी दिन पहले दर्जे के गर्शविन अवश्य बन जाओगे.” ऐसा हो भी गया था.
गर्शविन ने पुनः अस्वीकृति को नमन किया. जिसके कारण वे अपने बुनियादी वजूद को पहचान दिला सके.
”मंजिल को चल पड़े हैं, मंजिल के दीवाने,
ठान लिया है तो मंजिल भी मिलेगी, बनेंगे अनेक अफसाने.”
कभी-कभी यह मंजिल अस्वीकृति से ही मिल जाती है. अस्वीकृति ही हमारी पथ-प्रदर्शक, गुरु और मंजिल बन जाती है. कहते हैं न हर सुख-दुःख, स्वीकृत-अस्वीकृति में प्रभु ने हमारे लिए कुछ अच्छा सोच रखा है. इसलिए उसकी रजा में राजी रहकर अपनी शक्ति को पहचानना हितकर होता है. ऐसा ही अमेरिका के महान गीतकार जॉर्ज गर्शविन के साथ हुआ.