गीत – पाती आज लिखी है फिर प्रिय!
पाती आज लिखी है फिर प्रिय!भेजी नहीं रही मज़बूरी।
कहते थे तुम जाता हूँ अब,
चाँद सितारे सूरज लाने।
स्वप्न मूर्त होने वाले हैं,
कुछ पैसे बस और कमाने।
आने को थी कितनी आतुर,
वो खुशियाँ सब रहीं अधूरी।
कैसे बीतेगा यह जीवन,और रहेगी कब तक दूरी?
पाती आज लिखी••••••••••••।
भय से व्याकुल है जग सारा,
फैला है जब से कोरोना।
सूनी सड़कें हैै सन्नाटा,
चीखे मन का कोना-कोना।
कब महकेगी श्वास पुष्प सी,
कहे कौन सच्चाई पूरी?
कैसे बीतेगा यह जीवन,और रहेगी कब तक दूरी?
पाती आज लिखी••••••••••••••••।
आख़िर तुम क्या उत्तर देते,
अनसुलझे कुछ प्रश्न सर्वदा।
मौन साधकर बैठा हैै जब,
बरसाकर यह दारुण विपदा।
घोल दिया है गरल हवा में,
भोंकी है अन्तस में छूरी।
कैसे बीतेगा यह जीवन,और रहेगी कब तक दूरी?
पाती आज लिखी•••••••••••••।
ऐसा लगता रूठ गई है,
मानव से अब प्रकृति सजीली।
आर्त कंठ हैै नतमस्तक है,
सूखी आँखें हुईं पनीली।
हाथ जोड़कर सोच रहा मन,
छायी थी क्यों तब मगरूरी?
कैसे बीतेगा यह जीवन,और रहेगी कब तक दूरी?
पाती आज लिखी•••••••••••••••••।
आशा है विश्वास ईश पर,
छँट जायेगा कलुष घनेरा,
आओगे वापस ज़ल्दी ही,
कहता है हरक्षण मन मेरा।
तुम ही तो मुस्कान ‘अधर’ की,
तुम जीवन के लिए जरूरी।
कैसे बीतेगा यह जीवन,और रहेगी कब तक दूरी?
पाती आज लिखी•••••••••••••••।
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’