देह पर विजयोत्सव
कागज के किस्से दंशयुक्त जरूर है, किन्तु दंश देकर भी वे बहुत-कुछ कहती चली जाती है, सोचने के लिए विवश कर देता है, गाहे-बगाहे से परे ! कभी-कभी तो कैनवास के पास उनके सवाल का कोई जवाब नहीं रहता था । वे अक्सर कहा करती थी कि आजकल के चित्रकार नारी के आन्तरिक सौंदर्य का चित्र न बनाकर उनकी कसी देह को फोकस करते हैं , क्योंकि औरत की भीतरी दृष्टि को पार पाकर ही तब उसकी देह में तैरनेवालों को डूबने का कतई भय नहीं रहता है । औरत की देह पर विजयोत्सव सिर्फ कुशल तैराक ही मना सकता है, ऐसे तैराकों में लियोनार्डो डा विंची के नाम सम्मानपूर्वक लिए जा सकते हैं । कविता रचना और कैनवास में रंग भरने बालस्पर्द्धा तो है नहीं ! यह तो शिल्प की ऊँचाई पर गहन प्रतिस्पर्द्धा की बात है । तभी तो कविता उसके सपने में पहले ही आ जाती थी और जगकर एकबार में ही उसे लिख डालती थी, बाद में न कोई करेक्शन, न ही दुबारा फेयर ! फिर तो दंश-दशा के बतौर कैनवास के संदर्भ में उन्हें कंसीव करना बहुत-बहुत ही मुश्किल था !