लघुकथा

मर्दवादी भोगतंत्र

अमृता का अंत दंश का अंत नहीं है, सिर्फ श्रद्धा का अंत है, लज्जा का अंत है । इड़ा का अंत नहीं है, क्योंकि औरत का अंत उनकी देह का अंत नहीं है । मनु के मर्दवादी भोगतंत्र जिस लिप्सा से जुड़ा हुआ है, वह देह पाने के तत्वश: है, किन्तु इस कहानी की नायिका ने स्वयं अपनी देह को नायक के हवाले की, उसमें भी नायक के समक्ष स्वयं को श्रद्धेया के रूप में पेश करके । नायक ने उस देह को पूजा, सहवास करने से पूर्व अक्षत चढ़ाए….. यह जानते हुए भी कि नायिका मूर्त्तियों के संग्रह की शौकीन है, किन्तु पूजा की नहीं ! पूजा करना मर्दवाद है !

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.