गुरु स्मरण
गुरु पूर्णिमा के सुअवसर पर अपने आदरणीय गुरुजनों और गुरुमाताओं को साष्टांग दण्डवत ‘पदनखरजसम’ प्रणाम! हर क्षण और हर दिवस-रात्रि की भाँति आज भी मुझे आप इस अनगढ़ को क्षमा करेंगे ! आपकी लम्बी आयु और स्वस्थता की अभीष्टकामनाएँ भी है, आपके रहने से ही मेरी ज़िंदगी सँवरेगी! अपने पूज्य ब्रह्मलीन गुरुजनों को भी सादर प्रणाम ! वे जिस भी लोक में हैं, उनके आशीर्वाद मुझे मेरी गलतियों पर भी मिलते रहेंगे !
मुझे प्रथम अक्षरज्ञान एकसाथ मातामह, पितामह, माता-पिता और संत महर्षि मेहीं से मिला, उन सबके ऋण से मैं कभी उऋण नहीं हो पाऊँगा, पाना नहीं चाहता ! ये सभी तो मेरे दुलारे हैं !
गोविंद (भगवान) से भी उच्च दर्ज़ा ‘गुरु’ को प्राप्त है । अगर दोनों एकसाथ हैं, तो हमारे शास्त्र ने कहा है, इस समय प्रथमतः अपने गुरु को सम्मान दीजिये!
जैसा कि सर्वविदित है, स्वामी विवेकानंद से भी 5,000 वर्ष पहले भारत में एक ऐसा महान व्यक्तित्व का जन्म हुआ, जिनके कृतित्व का सुरभि संसारभर में फैला । जो अपने प्रवचनों से ईरान में भारतीय आध्यात्मिकता का वैश्विक ध्वजदंड गाड़े / गड़वाये !
माता मत्स्यगंधा और पिता महर्षि पराशर की संतान कृष्ण द्वैपायन व्यास, जिन्हें कालांतर में जगद्गुरु व्यास नाम से संसारख्याति मिली, का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा में हुआ था । उनकी पावन स्मृति में ही आषाढ़ पूर्णिमा ‘गुरु पूर्णिमा’ संज्ञार्थ अभिहित हुई । सद्गुरु व्यास के जन्मदिवस पर संसारवासियों को शुभ -शुभ मंगलकामनाएँ!