एक अद्भुत उपन्यास की समीक्षा
पहली बार ऐसी ‘नॉवेल’ लिखी गयी है, जिसकी शुरुआत ही बेहद अद्भुत है, परमपिता के यमदरबार और विचित्रगुप्त की लेखाजोखा बहीखाता से घटनाचक्र शुरू होकर कब सपने से निकल वास्तविकता में प्रवेश कर जाते हैं और भारत की ‘शिक्षा व्यवस्था’ पर कमेंट करती चली जाती है, पाठकों को भी पता चल नहीं पाता है ।
हिंदी उपन्यास वेंटिलेटर इश्क़ में ‘बिहारी शिक्षा व्यवस्था’ पर भी तंज कसा गया है, जिसमें इंजीनियरिंग कॉलेजों की दुर्दशा, तकनीकी शिक्षा और प्रैक्टिकल व्यवस्था का अभाव, नाम के ‘असाधारण कॉलेज’ में बेकार पढ़ाई की व्यवस्था, कॉलेज व्याख्याता के नाम पर सीनियर स्टूडेंट्स और पॉलिटेक्निक संविदा शिक्षकों से कोरम पूरा करवाये जाना, बावजूद उन्हें समय पर वेतन न मिलना पर -जैसे गंभीर मुद्दों पर गहरे सवाल इस ‘प्रेम कहानी’ द्वारा उठाये गये हैं, तो उपन्यास में मिलेंगे ‘मस्तानी मुहावरें’ भी, जैसे- मोबाइल बेचकर सोना।
ऐसे प्रसंग और लक्ष्य ही ‘वेंटिलेटर इश्क़’ को बेहतरीन उपन्यास बनाता है। इसतरह के उपन्यास कम ही पढ़ने को मिलती हैं।