कविता

तुलसी  की   रामायण

तुलसी  तेरी  रामायण  से कितने  जीवन  सुधर गए है।
घर  घर में  है  इसकी  पूजा  चाहे  वर्षों  गुजर  गए है।।
भारत  क्या  भारत से बाहर  भी  इसकी  पूजा होती है ।
मानस  के  पढ़ने से  ही होती  अंतर तम  में ज्योति है।।
हर   दोहा   चौपाई   मन   को  ऐसी  शिक्षा  दे जाती है।
सियाराममयी सब जग जानी ऐसी उक्ति कह जाती है ।।
मात- पिता- गुरुजन की सेवा भ्रातृ – प्रेम आदर्श बताये।
नारी – धर्म सीता  सा  जीवन  हर  नारी   ही  हो  जाए ।।
जब  तक  जग  में मानव होगा तेरी कीर्ति  सदा रहेगी ।
तुलसी मानस ज्योति तब तक सदा जलती सदा रहेगी ।।
दुष्ट -असुर- दुराचारी   का   अंत  करेगा  राम- पुजारी।
राम- भक्ति  की   शिक्षा    सदा  हीलेगी  दुनियां  सारी।
— डा केवलकृष्ण पाठक

डॉ. केवल कृष्ण पाठक

जन्म तिथि 12 जुलाई 1935 मातृभाषा - पंजाबी सम्पादक रवीन्द्र ज्योति मासिक 343/19, आनन्द निवास, गीता कालोनी, जीन्द (हरियाणा) 126102 मो. 09416389481