कविता

कल्याण

चाहा भारत की संस्कृति ने सदा हो विश्व का  कल्याण कालान्तर में धीरे धीर स्वार्थ -परायण हो गए  लोग भेद भाव और उँच-नीच के लग गए सबके मन में रोग भौगोलिक ऐतिहासिक कारण परिवर्तन आया सब में करने लग गए सभी विश्व में भेद वर्ण जाति उपयोग मूल उद्गम संस्कृति भारती है हम सब् को […]

कविता

लक्ष्य जीवन का स्वयं को जानना

आत्मा परमात्मा का अंश है जीव के कण कण में ही वह व्याप्त है देखने में वह कभी दिखता नहीं ढूंढते रहते ऋषिगण बुद्धजन पर ना देखा है किसी ने आजतक होता है आभास बस उस प्राणी में जिस ने खोजा और पाया अपने में आत्मा मरती नहीं जलती नहीं ना ही पानी उसको गीला […]

गीतिका/ग़ज़ल

जलाएं दीप सब मन में

अँधेरे    में  उजाला  कर  ,जलाएं   दीप   सब   मन  में कि रोशन हों सभी के मन,ना नफ़रत हो किसी  मन में चलें   सब  नेक   रस्ते  पर , करे  ना  कुछ  बुरा   कोई बुराई  को   ख़त्म  करने का, जज्बा  आये सब मन में बड़े-बूढ़े   जो   शिक्षा  दें,तो […]

कविता

आओ देश महान बनायें

देशवासिओ जागो सारे, अपने दिल में सोच विचारो दूसरों की ग़लती ना देखें, अपनी गलती आप सुधारो कूड़ा – करकट अपने अंदर, है जितना भी भरा पड़ा ध्यान- धारणा से ही इसको, बहार करना काम बड़ा हम बदलें तो युग बदलेगा, बहेगी सब में प्रेम की धारा सत्य प्रेम करूणा से निश्चित, जाग जायेगा देश […]

कविता

आदमी का लक्ष्य

सयमित  जीवन   बिताना  लक्ष्य  है इंसान का पर   संयमहीन   जीवन   को बिताता आदमी हो  गया   स्वाधीन  है  पर  मानता पराधीन है एसे वातावरण में  खुश रहना  चाहता  आदमी आज तो  लगता  है ऐसा आदमी  निस्वार्थ  है धोखा   दे के  राज्य  करना  चाहता है आदमी लगता जैसे आदमी हर हाल […]

कविता

घटा घनघोर

छा  गायघाता घनघोर देख  देख नाचे मन मोर धरती की है गंध प्यारी महकेगी  बगिआ महकारी पंछी भी मचाएंगे शोर देख  देख नाचे मन मोर बिजली की कौंध देख धड़केगी ह्रदय की रेख मचल उठेगा मन मोर छा  गायघाता घनघोर नन्हें बच्चों की किलकारी वर्षा में लगती है प्यारी मन में उठेगी हिलोर छा  गायघाता […]

गीतिका/ग़ज़ल

देश की खातिर

जवानी  में   जवां   होकर   जिए जो देश  की  खातिर समय   आया   तो  देदी जान  अपने देश की खातिर नहीं  चिंता  की  माँ  की , बाप की ,भाई व बहनों की पत्नी   बाल -बच्चे   छोड़   गए   वो  देश की खातिर गए   सीमा   पे   भूखे […]

कविता

आत्म खोज

आत्मा परमात्मा का  अंश है जीव के कण-कण में ही  वह व्याप्त है शुद्ध है,निर्मल है और निर्लिप्त है देखने को वह कभी दिखता नहीं ढूंढते  रहते ऋषिगण-बुद्ध जन पर ना  देखा है किसी ने आजतक वह किसी  को भी कभी दिखता नहीं होता है आभास बस उस प्राणी को जिस ने खोजा  और पाया […]

कविता

लक्ष्य जीवन का

आत्मा परमातना का अंश है जीव के कण-कण में ही वह व्याप्त है शुद्ध है,निर्मल है और निर्लिप्त है देखने को वह कभी दिखती नहीं ढूंढ़ते रहते ऋषिगण-बुद्धजन पर ना देखा है किसीने आज तक होता है आभास बस उस प्राणी में जिस ने खोजा और पाया स्वयं में आत्मा मरती नहीं जलती नहीं ना […]

कविता

राष्ट्र- प्रेम को कभी ना  भूलें

समय है आज सभी मिलकर सोप विचारें ,    , सर्व प्रथम हम आपने मन को शुद्ध बनायें, जीवन में हम देश प्रेम को कभी ना भूलें, देश में रहने वालों के दुःख दूर भगाएं सदा ही दृढ हो सत्य बोलने का हम व्रत लें, प्रेम की वाणी बोल के सब का मन हर्षाएं दया […]