5 अनुभूत कविताएँ
1.
पुरुषोत्तम !
मौलिक इतिहास में
लाखों वर्ष पूर्व की
सभ्यता-संस्कृति के बारे में
उल्लिखित नहीं है,
तथापि श्रीराम कथा को लेकर चलते हैं,
तो श्रीराम को भगवान कहूँ या पुरुषोत्तम !
वैसे उनके प्रसंगश:
कई घटनाएँ ऐसी हैं
कि उन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहने पर
ठिठक जाता हूँ !
अपेक्षा थी
कि आप दोनों पक्ष रखते,
लेखक को अंधश्रद्धा से
बाहर आनी चाहिए !
2.
राम-राम
2 बार ‘राम’ कहने से,
अर्थात राम-राम !
तो इनके अर्थ बदल जाते हैं !
इन्हें छि: छि: भी कहते हैं !
‘हे राम’ से भी अर्थ बदल जाते हैं !
आराम हराम से भी !
3..
शबरी के बेर
किसी के जूठे खाने
और खिलाने से ‘प्रेम’ नहीं बढ़ती,
अपितु ‘बीमारी’ बढ़ती है !
बीमार से प्रेम रखिये,
बीमारी से क्योंकर भला ?
सच में जूठे खाने से
बीमारी फैलती है !
4..
जलफुहार
मैं इतना प्रायोगिक
हो गया हूँ,
नास्तिकता के करीब
हो गया हूँ !
तथापि झूमता सावन
अड़ गया है,
तन-मन में
जलफुहार
कर गया है !
5.
श्रद्धांजलि
दो-दो प्रधानमंत्री के साथ
काम कर चुके
पूर्व केंद्रीय मंत्री
“एस. जयपाल रेड्डी” की
पहली पुण्यतिथि पर
ऐसे ऊर्जस्विन शख़्सियत को
सादर श्रद्धांजलि,
हृदयांजलि !