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हरियाणा के रजिस्टर्ड सांड़ निरीह ‘बकरी’ का ‘ग्रुप रेप’ कर रहे ? शेम ! शेम ! हंस / मई 2018 पढ़ा. सम्पादक की लेखनी-धार पैनी होती जा रही है, किंतु हम भारतीय ‘पैनिक’ नहीं हो रहे हैं. ‘हंस’ की पहचान सम्पादकीय से है. प्रेमचंदीय ‘हंस’ में यह होती थी या नहीं, पता नहीं ! परंतु राजेन्द्र यादव ने आस्था को तर्क की कसौटी पर न केवल उतारा, अपितु तौल-माप किया और हर अंक में उत्तर कोरियाई परमाणु विस्फोट किया. मई 2018 में आज के राष्ट्र (धृतराष्ट्र !) वाले संजय (संजय सहाय !) ने ‘बलात्कार’ पर वाजिब लिखा है. बलात्कार जघन्यतम अपराध है, इसके कृत्यकारक को मुआफी नहीं दी जा सकती ! किंतु जानते हैं, यह बलात्कार-सोच कहाँ से और कैसे आए हो सकते हैं. जहाँ आप-हम रहते हैं, वहाँ तो लौटिए ज़रा ! कुत्ते सामूहिक रूप से एक कुत्ती पर सरेआम और बीच चौराहों पर ‘बलात्कार’ करते हैं. जहाँ जैसा मौका मिला, हर आयुवर्ग के पुरुष इस दृश्य को देखता है. अगर इसे बड़ा इशू नहीं बनाया जाय, तो डंके की चोट पर ऐसा भी कहूंगा, इस दृश्य को छिपकर महिलाएं भी देखती हैं. अब भी गाँव की महिलाएं, जो बकरियाँ पालती हैं और बकरी की उत्तेजनात्मक मादा-काल में आने पर उसे बकरा (बोतू) के पास ले जाती हैं, इसे अविवाहित महिला भी ले जाती हैं, तो बच्चे भी. बकरी को खूंटी से बांध दी जाती है और बकरे से सेक्स व रेप कराए जाने पर आनंदित होती हैं. सांड़ों (अरियां बैल) द्वारा भी गाय माताओं के साथ खुलेआम ‘बलात’ किया जाता है. क्या हमारे पुरुष बच्चे पशुओं के ऐसे कृत्य को आदर्शतम स्थिति या प्रेरणा मानते हैं ।
बावजूद, सांड़ के साथ निरीह बकरी यानी अप्राकृतिक यौनाचार ! छि ! छि !! हम कहाँ जा रहे हैं ? हमारे 1,000 साल पहले के खजूराहो-संस्कार या फिर 5,000 साल से भी पहले श्रीकृष्ण के साथ 16,000 से ऊपर परस्त्री कौन थी आखिर ? क्या सेक्स इतने ही अनिवार्य हैं ? क्या ‘सोनागाछी’ हर शहर में चाहिए ? योग और भोग एक साथ चल सकते हैं क्या ? सम्पादकीय ने स्पष्ट किया– हम मानव हैं, पशु नहीं ! मानव में बुद्धि का होना उन्हें हर प्राणियों में उच्चतम बनाता है, बावजूद पशुओं की भांति इन मानवों में एक लिंग और एक योनि भी है, जो आसक्ति और आकर्षण का कारण है. हमारे संस्कार और भोजन हमारे तन को आकुल करते हैं. हम भी 100 फीसदी ‘पाश्चात्य’ हो गए हैं और विधि बनानेवाले ‘विधायक’ तक ‘नेट’ पर सनी लियोन को ढूढ़ते हैं. क्या है यह सब ? ऐसे में इस ‘मातृ दिवस’ (13 मई) पर माताओं से आग्रह है कि वे ‘मानव-सृजन’ करनी छोड़ दे, जहां ‘बलात्कार’ के तत्वश: एक बात– ‘हंस’ (प्रस्तुतांक) में अरुणेंद्र नाथ वर्मा की प्रकाशित कहानी का शीर्षक ‘मरद की जात अइसाइच होती!’ हमारे समाज और संस्कार के लिए बहुत कुछ कह देती है।