राजनीति

जंगल के असली दावेदार

‘नक्सलवाद’ शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से हुई है। साम्यवाद के सिद्धान्त से फ़ौरी तौर पर समानता रखने वाला आदिवासी आंदोलन कई मायनों में अलग भी था। बाद में इसे माओवाद से जोड़ दिया गया। हालात तो आज भी नहीं बदले हैं।

आदिवासी गांवों से खदेड़े जा रहे हैं, दिकू अब भी हैं। जंगलों के संसाधन तब भी असली दावेदारों के नहीं थे और न ही अब हैं। आदिवासियों की समस्याएं नहीं बल्कि वे ही खत्म होते जा रहे हैं।

सब कुछ वही है। जो नहीं है तो आदिवासियों के ‘भगवान’ बिरसा मुंडा। ‘सत्याग्रह’ के अनुसार उनकी कृति महत्वश: ही ये संत व चमत्कारी पुरुष आज भी झारखंड ही नहीं, देश-दुनिया के लोगों में चिरनित बसे हैं ! यही तो अमरता है। बरक्स, महाश्वेता दीदी की याद आ जाती है….

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.